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 *महाशिवरात्रि स्पेशल*



कैलाश नाथ शंकरा,

विराट रूप भयंकरा।

बाघमबरा दिगंबरा,

चरा - चरा भू अंबरा।।


करे सवारी बैल की,

सजे न कोई पालकी।

मृदंग शंख नाद की,

भुजंग - भुजंग माल की।।


चंद्र भाल में सजे,

भस्म देह में रजे।

रमा रहे अनंत में,

अनंत शिव में रमे।।


पिशाच भूत नाचते,

मिशान श्रृंगी बाजते।

शिव के समाज को,

मरी - मशान साजते।।


काल अकाल से परे,

जरा से जो परे रहे।

अनंत आदि काल को,

त्रिशूल शूल में धरे।।


धधक - धधक - धधक रही,

त्रिनेत्र ज्वाला भाल की।

देह मे सुशोभितम ,

सुशोभितम खाल की।।


घोर - अघोर नाथ की,

सुर - असुर साथ भी।

जटा विशाल में सजे।

पतित गंगा पावनी।।


पयोधि रत्न से सजे,

बने वो सुर पीतांबरा।

पयोधि कूट जो पिये,

बने वो नील शंकरा।।


शंकरा - शंकरा ,

नमो शिवाय शंकरा।

मृदंग ताल में मचे,

विराट रूप भयंकरा।।


     शंकरा शंकरा 

नमो शिवाय शंकरा ....



 वेद प्रकाश दिवाकर 

    शिक्षक

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