*नई बहू*
नई बहू है जब से आई,
रंग खुशियों की घर में छाई।
चांद सा मुखड़ा शरमाई सी,
झिझक- झिझक और घबराई सी।
गोल - कपोल मृगनयनी सी,
लंब ललाट रंग उजली सी।
प्रेम भाव मुख में उजियारी,
पगलक्ष्मी परिवार सवारी।
धूप दीप की महक समाई,
नई बहू है जब से आई।।
मर्यादा की है वह रानी,
सरस भाव सुमधुर वाणी।
सास बहू सम प्रेम की माया,
जैसे काया की हो निज छाया।
गुण छत्तीस अकूत है,
पतिव्रता अभिभूत है।
आनंद मगन है घर बसाई,
रंग खुशियों की घर में छाई।
नई बहू है जब से आई,
नई बहू है जब से आई।।
*वेद प्रकाश दिवाकर*
*शिक्षक*
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