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कारक

            कारक

                        


परिभाषा:-  संज्ञा या सर्वनाम  क्रिया के साथ संबंध जोड़ने वाले शब्द कारक कहलाते हैं।


कारक के भेद-  कारक के आठ भेद होते हैं-

1. कर्ता कारक       

2.कर्म कारक       

3.करण कारक         

4.संप्रदान कारक      

5.अपादान कारक   

6.संबंध कारक  

7.अधिकरण कारक  

8.संबोधन कारक     


(1) कर्ता कारक (ने)-  वाक्य में क्रिया करने वाले को कर्ता कहते हैं।  कर्ता संज्ञा या सर्वनाम होते हैं।       

जैसे- 1. रोहन ने हांकी खेली।

2. दादी मां रामायण पढ़ती है।     

3. कविता ने पाठ पढ़ा।   

4. राम ने पत्र लिखा।   

                        

(2) कर्म कारक (को)-  वाक्य में क्रिया का फल जिस संज्ञा या सर्वनाम शब्द पर पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं।

जैसे- 1. शिक्षिका ने बच्चों को पढ़ाया।

2. कृष्ण जी ने कंस को मारा।  

3. अभिषेक बैडमिंटन खेलता है।

4.  राज को पत्र लिखा।      


(3) करण कारक (से)- जिस साधन या माध्यम से क्रिया होने का बोध होता है ,उसे कारण कारक कहते हैं।

जैसे- 1. मां बेलन से गोल -गोल रोटियां बनाती है।

2. पुनीत बस द्वारा स्कूल जाता है।

3. राम ने 'कमल' से पत्र लिखा।


(4) संप्रदान कारक (को, के लिए)-  कर्ता जिसके लिए काम करता है या जिसे कुछ देता है , उसे संप्रदान कारक कहते हैं।

जैसे- 1. राखी के मौके पर मैंने दीदी को उपहार दिया।

2.मरीज के लिए दवाई खरीद लाओ।

3. मोहन ने 'राम' के लिए पत्र लिखा।


(5) अपादान कारक (से)-  संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रुप से अलग होने का बोध होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं।

जैसे- 1. पर्वत से नदी निकलती है। 

2. संजय बस से उतर गया।   

3. पेड़ से पत्तियां गिरी     

4. 'मोहन से' सोहन बड़ा है।    


(6)संबंध कारक (का ,के, की)- शब्दों के जिस रूप से वस्तु, व्यक्ति का पारंपरिक संबंध प्रकट होता है, उसे संबंध कारक कहते हैं।           

जैसे- 1. सुधा का घर बहुत बड़ा है।

2. तुम्हारे पिताजी दिल्ली गए हैं।

3.'मोहन की बहन'।

4. पिताजी की टोपी।

 

(7) अधिकरण कारक (में, पर) - वे कारक जिन से क्रिया के स्थान, आधार या आश्रय का बोध होता है, उन्हें अधिकरण कारक कहते हैं।

जैसे- 1. खाना मेज पर लगा दिया है।

2.बोतल में दूध बचा है।

3. संदूक में टोपी है।

4. डेस्क पर पुस्तक रखी है।

                       

 (8) संबोधन कारक (हे,अरे, ओ,)- संज्ञा के जिस रूप से किसी को संबोधित करने अथवा पुकारने का बोध होता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं।  

जैसे- 1. हे प्रभु! रक्षा करो।  

2. अरे! तुम्हें चोट तो नहीं लगी? 

3. 'राम! ठहरो' मैं भी आ रहा हूं।


                       कंचन धिरही

                बी .एस .सी (फाइनल) गणित

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