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बालिका शिक्षा/ जागरूकता के लिए विशेष प्रयासरत शिक्षिका ज्योति बनाफार

बालिका शिक्षा/ जागरूकता के लिए विशेष प्रयासरत शिक्षिका ज्योति बनाफार

 नवाचार हम किशोरियां




                    शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला मटका में में ज्योति बनाफर शिक्षक के रूप में पदस्थ हूं। वहां पर मैं गणित विषय पढ़ती हूं।इस बीच मैंने महसूस किया कि बच्चों में कुछ जागरूकता लाने की आवश्यकता है।खासकर बालिकाओ में उन्हें बहुत सारी जानकारी की आवश्यकता है। जिनका अभाव उनके व्यक्तित्व विकास में बाधा डाल रही है।       

                  इनमें से कुछ पक्ष जैसे गुड टच-बैड टच,माहवारी संबंधित,स्वच्छता,बाल विवाह बाल श्रम,लैंगिक भेदभाव, उत्पीड़न एवम अंधविश्वास मैंने सोचा क्यों ना बच्चों से इन सभी पक्षों पर चर्चा किया जाए।पर कुल इस सत्र में हमारी शाला में 99 लड़कियां थी और इन सारी बालिकाओ तक एक साथ बातचीत कर पाना तथा उनके मनोभाव को समझ पाना आसान न था।

                  क्योंकि जो संप्रेषण क्षमता मैं बच्चियों से चाहती थी वह मुझे नहीं मिल पा रहा था बच्चे मुझसे बात करने में सहज महसूस नही कर पा रहे थे। पर मैंने देखा कि वह आपस में बहुत सहज रूप में बात कर लेते थे।

             सभी बालिकाओ तक पहुंच बनाने के लिए मेंटर बनाना उचित लगा। इसके लिए कक्षा आठवीं की बालिकाओ  का चयन किया क्योंकि वे शायद अपनी बात अपने शब्दों में अन्य बच्चों तक पहुंच सके।मैटर के रूप में दिव्या, किरण ,लीना ,रुचिका, लक्ष्मी,लतेश्वरी, पूर्णिमा ,स्वीटी एवं भावना का चयन किया। इन बच्चियों से जब हमने बातचीत की तो जो पक्ष सामने आया वह बिल्कुल हमारी सोच के अनुकूल था बच्चों को भी उन्हीं बातों में समस्या था जिन मुद्दों को हमने सोचा था बच्चों से भी यही बातें निकाल कर सामने आई और बहुत सार्थक बातों पर चर्चा हुआ।

            अब मेंटर बालिकाओ द्वारा कक्षा की अन्य बालिकाओ के साथ 7-8 का समूह बनाकर चर्चा आगे बढ़ाया। कोशिश यह रहा कि सभी बच्चों तक समझ अच्छे से स्थापित हो सके।इसके लिए सबसे पहले हमने माहवारी पर बात की तथा इससे संबंधित समस्याएं अंधविश्वास माहवारी के दौरान एक्सरसाइज करें या ना करें किस तरह की नैपकिंस का उपयोग करें नैपकिंस कितने घंटे बाद बदली करें।बहुत गहराई से हमने इसकी चर्चा की।

                चर्चा के दौरान जो सबसे बड़ी समस्या आई थी वह है कि हमारी शाला की बच्चियों तीन गांव से आती हैं और कभी-कभी स्कूल में महावारी आ जाने से इसी स्थिति में अपने घर तक जाती हैं क्योंकि हमारे स्कूल में ऐसा कोई फंड नहीं था जिसमें हम बच्चियों के लिए सेनेटरी नैपकिन खरीद कर रख सके। जिससे बच्चों को बहुत दर्द और तकलीफ का सामना करना पड़ता था।साथ ही उनके असमय शाला से घर जाने पर भी डर बना रहता था कि रास्ते मे सुना पन कोई समस्या न स्थित कर दे।क्योंकि स्कूल से उनके गांव की दूरी 3 किलोमीटर की थी। हमने बच्चियों के साथ बात करके सबसे पहले इस समस्या का समाधान करने की कोशिश की।  

                हमनें अपने स्कूल में सेनेटरी नैपकिन पैड बैंक बनाने की योजना तैयार की और जल्द ही हम इस योजना में सफल रहे। कलेक्टर महोदय के साथ-साथ शाला प्रबंधन समिति, गांव के गणमान्य नागरिक विकासखंड बेमेतरा के नागरिकों द्वारा हमें सेनेटरी नैपकिन पैड प्रदान किया गया। और बहुत जल्द हमारी शाला में करीब 1 साल के लिए आवश्यकता के अनुरूप सेनेटरी नैपकिन पैड की उपलब्धता हो गई।जो बच्चों के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हुई अब बच्चियां स्कूल में बहुत ही खुश एवं सुरक्षित थी उनका उपस्थिति भी बढ़ने लगा। उपयोग के लिए भी हमने एक नियम बनाया प्रत्येक कक्षा की दो-दो में बच्चियों को सेनेटरी नैपकिन पैड के पैकेट दिया करते थे ताकि आवश्यकता पड़ने पर अन्य बच्चियों उनसे ले सके।हमने माहवारी संबंधित अंधविश्वास एक्सरसाइज सेनेटरी नैपकिन पैड का सही उपयोग समय पर महावारी आना इन सब बातों पर भी हमने सार्थक चर्चा की साथ ही हमने अपनी चर्चा में डॉक्टर प्रीति सिंह को बेमेतरा उसे अपनी शाला में आमंत्रित किया जिन्होंने बच्चियों के बातचीत कर उन्हें इन सब बातों की बहुत ही अच्छे से सटीक जानकारी दी और जिन बच्चियों को अनियमित माहवारी की समस्या थी उनके परिजनों से बात कर सरकारी अस्पताल में इलाज की उपलब्धता के विषय में भी बताया गया।इस विषय पर क्विज प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसमें बच्चों ने बढ़ चलकर हिस्सा लिया प्रतिभागी बच्चों को पुरस्कृत भी किया गया।

          इस योजना का सफलतापूर्वक आयोजन में जो सबसे बड़ी चुनौती आई वह थी बच्चियों तक पहुंच बनाना जो मेंटर द्वारा आसान ही गया था।चूंकि हमारे स्कूल में लड़के और लड़कियां दोनों एक साथ पढ़ते हैं।इस स्थिति में सिर्फ लड़कियों के साथ काम करना आसान नहीं था क्योंकि सभी शिक्षक अपनी समय सारणी के अनुसार कक्षा लेते थे। यदि हम कक्षा की लड़कियों से बातचीत करते हैं तो वहां पर कक्षा में पढ़ने वाली लड़के साथ होते थे।अलग से बिठाते तो भी लड़के शोर मचाते थे ।तो इसके लिए हमने अपनी प्रधानपाठिका से बातचीत की तथा उन्हें यह कहा कि क्यों ना खाने की छुट्टी पहले लड़को की कर दी जाए जिससे कक्षा में हम बच्चियों के साथ रुक सके। और उन्हें इन सब बातों की जानकारी प्रदान कर सकें और यही हमें सफलता मिली प्रत्येक दिन हमें 15 से 20 मिनट बच्चों से बात करने के लिए बहुत आसानी से मिलने लगा और बच्ची अभी इसमें बहुत रुचि लेने लगी अंततः बहुत सारी विषय पर सफलतापूर्वक बातचीत हुई और हमें पूर्ण सफलता मिली। इस तरह से यह सारी बातें बच्चों की व्यक्तिगत विकास में भी मदद करने लगी।इस तरह से हमारी कक्षा की 99 बच्चियों को हमारी इस योजना *हम किशोरीया* से बहुत बड़ा फायदा मिला।।   

                 

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