एक शिक्षिका का अनूठा सफर: शिक्षा, समाज और समर्पण की मिसाल
श्रीमती कमला दपी गवेल, शासकीय हाई स्कूल परसदा खुर्द के विकासखंड सक्ति में गणित की व्याख्याता हैं, जिन्होंने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि पर्यावरण, संस्कृति और समाज सेवा में भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है। सन 2007 में शिक्षा विभाग में नियुक्त होकर, 2010 से वे लगातार शासकीय हाई स्कूल परसदा खुर्द में अपनी सेवाएं दे रही हैं। उनका यह सफर उपलब्धियों से भरा है, जो दूसरों के लिए एक प्रेरणा है।
शिक्षा में नवाचार और उत्कृष्टता
श्रीमती गवेल का मानना है कि शिक्षा को रुचिकर और प्रभावी बनाने के लिए नवाचार आवश्यक है। वे गणित जैसे विषय को भी कंप्यूटर और प्रोजेक्टर जैसे आधुनिक उपकरणों की मदद से पढ़ाती हैं, जिससे बच्चों में विषय के प्रति रुचि पैदा होती है। उनके मार्गदर्शन में बच्चों ने न केवल अकादमिक क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
सामाजिक सेवा और मानवीय संवेदनाएं
श्रीमती गवेल का कार्य सिर्फ कक्षा तक सीमित नहीं है। वे दृष्टिबाधित बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए भी लगातार प्रयासरत रहती हैं। अपने प्रयासों से उन्होंने इन बच्चों के लिए समाज के ऐसे व्यक्तियों को जोड़ा है जो उनके सहयोग के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। उनका मानना है कि शिक्षा का सही अर्थ तभी है जब वह सभी के लिए सुलभ हो।वे भारत स्काउट और गाइड के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। उनके मार्गदर्शन में 9 बच्चों (5 गाइड और 4 स्काउट) ने शक्ति जिले के पहले राज्यपाल पुरस्कृत होने का गौरव प्राप्त किया, जिन्हें माननीय राज्यपाल श्री रामेण डेका जी ने सम्मानित किया।
वे बालिका शिक्षा को लेकर भी निरंतर प्रयासरत रहती हैं। वे छात्राओं को माहवारी के दौरान स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में शिक्षित करती हैं और उन्हें व्यक्तिगत सुरक्षा और आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी देती हैं। उनका यह कार्य बच्चों को सशक्त बनाने और उन्हें समाज में सुरक्षित महसूस कराने में मदद करता है।
पर्यावरण और संस्कृति के प्रति समर्पण
स्कूल में बाउंड्री वॉल न होने के बावजूद, उन्होंने बच्चों के साथ मिलकर बस से घेरकर एक हरा-भरा वातावरण तैयार किया। उनके प्रयासों से स्कूल परिसर में एक सुंदर किचन गार्डन और पोषण वाटिका विकसित हुई है, जो आज भी हरियाली की मिसाल पेश करती है। इनकी इस उपलब्धि क़ो यूनिसेफ़ संस्था द्वारा अपने ब्लाग पोस्ट में स्थान दिया गया यह दिखाता है कि कैसे सीमित संसाधनों में भी बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।
शिक्षा के अलावा, श्रीमती गवेल ने छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक पारंपरिक संस्कृति को बचाने के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सन 2017 से 2025 तक, उनके मार्गदर्शन में स्कूल के बच्चों ने अब तक राज्य, संभाग जिला, विकासखंड स्तरीय युवा उत्सव में कुल 43 पुरस्कार जीते, जिनमें से राज्य स्तर पर पाँच प्रथम पुरस्कार कृषि उत्पाद, हस्तकला, भरथरी गायन, लोक नृत्य, रॉक बैंड जैसे विधाओं में माननीय राज्यपाल महोदय श्री रामेण डेका जी के करकमलों से प्राप्त हुए। इस पुरस्कार में विद्यालय को ₹60000 की पुरस्कार राशि भी प्राप्त हुई इसके अलावा, 2024-25 में, मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एनसीईआरटी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम में, उनके मार्गदर्शन में 6 विद्यार्थियों ने बस्तर के विलुप्त रेला पाटा नृत्य को "एक पेड़ मां के नाम" थीम पर प्रस्तुत किया। उनके इस प्रयास की निर्णायकों ने भी सराहना की।
शिक्षक-विद्यार्थी का अटूट रिश्ता
श्रीमती गवेल द्वारा बच्चों को दी जाने वाली विभिन्न गतिविधियों और शिक्षा के प्रति उनके समर्पण का परिणाम है कि उनके पूर्व विद्यार्थी कॉलेज पहुँच जाने के बाद भी स्कूल से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं। वे आज भी अपने शिक्षकों से मिलकर प्रसन्न होते हैं और हर वर्ष विद्यालय के कार्यक्रमों में सहयोग देते हैं। विद्यार्थियों का यह लगाव और समर्पण निश्चित रूप से श्रीमती गवेल द्वारा दिए गए ज्ञान की पराकाष्ठा और विद्यार्थियों के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।
श्रीमती कमला दपी गवेल का जीवन एक उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति अपने प्रयासों से कई क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। उनका यह सफर शिक्षा, पर्यावरण और संस्कृति के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो सभी के लिए एक प्रेरणा है।
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