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सर्वोत्तम प्रथाओं के माध्यम से स्कूलों को बदलना

 स्कूल नेतृत्व गतिविधियाँ : सर्वोत्तम प्रथाओं के माध्यम से स्कूलों को बदलना

 


श्रीमती शकुन्तला साहू

(सहायक शिक्षक )

प्राथमिक शाला – कुम्हारपारा, संकुल केन्द्र – महावीर चौक

विकासखण्ड व जिला – नारायणपुर (छत्तीसगढ़)

मोबाईल नंबर – 8815818088,9407910899, ईमेल – sahu.shakuntala182@gmail.com

पूर्ण डाक पता :- वार्ड नम्बर 10,दुर्गा मंदिर के बाजु, कुम्हारपारा,नारायणपुर जिला – नारायणपुर (छ.ग.)

पिन – 494661






सारांश :-

                शैक्षणिक गुणवत्ता के क्रियान्वयन के लिए सबसे महत्वपूर्ण था बच्चों को सीखने के लिए प्रेरित करना,परन्तु सीखने के लिए प्रेरित कैसे किया जाये, उनमे रूचि का विकास कैसे हो, जिज्ञासा की अभिवृत्ति किस प्रकार किया जाये, इन सभी समस्यों के निराकरण के लिए नवाचार ही सबसे बड़ा अस्त्र रूप में काम आया और इसके लिए मैंने शिक्षण में सरल से सरल विधि जैसे :- खेल खेल में शिक्षण, सहायक शिक्षण सामग्री निर्माण को शामिल किया जो बच्चों में आकर्षण का केंद्र बना जिसके बाद विषय वस्तु सुगमता के साथ बच्चों को समझ आने लगी, अब बच्चे स्वयं से शिक्षण में रूचि लेने लगे और अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को समझकर उसका निर्वहन करने लगे | परिवर्तन प्रकृति का नियम है, और शिक्षा में परिवर्तन की बात कहीं न कहीं नवाचार को हमें इंगित करता है | यहाँ पर मैंने नवाचार के रूप में मिट्टी से बनी वस्तुओं के बारे में बच्चों को जानकारी देने का प्रयास किया है जिसके लिए सामाजिक अंतःक्रियात्मक नवाचार प्रक्रिया का उपयोग किया है जिसमे समाज के व्यक्तियों से सहयोग लेकर या समूह से वार्ता कर हम नवाचार का विकास, उपयोग करते है |                                                   सर्वप्रथम मैंने समस्या की पहचान कर उसके निराकरण हेतु चिंतन करना उचित  समझा, शिक्षण के दौरान होने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओ को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया तथा गहन अवलोकन, मूल्यांकन और शिक्षण के दौरान होने वाली अनुभूतियो को मैंने इसका आधार बनाया और इस दिशा में कार्ययोजना तैयार कर समस्या का चिन्हांकन, समस्या का निराकरण हेतु किये जाने वाले विभिन्न चरण बद्ध बिंदु क्या होने चाहिए, तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त होने वाले निष्कर्ष की सूची दूसरी कक्षा के अलग अलग विषयों में अन्य शिक्षको के द्वारा कराये जाने वाले शैक्षणिक क्रिया कलापों का अवलोकन कर उसका निष्कर्ष निकलकर अपने अनुप्रयोगों में शामिल किया | पाठ, पठन – पाठन दौरान मुझे ज्ञात हुआ की बच्चों में मिट्टी से बनी वस्तुओ के निर्माण सम्बन्धी समस्त गतिविधियों की जानकारी का अभाव है जिसके लिए मुझे लगातार प्रयास करते रहना होगा, साथ ही इसमे एक सरल, सुगम और नयी जानकारियों से परिपूर्ण विधि का उपयोग बच्चों को समझाने हेतु लाना पड़ेगा |  




परिचय :-

               मैं श्रीमती शकुन्तला साहू सहायक शिक्षक प्राथमिक शाला कुम्हारपारा नगर पालिका नारायणपुर में पदस्त हूँ | मेरा विद्यालय एक ऐसे स्थान पर स्थित है जहाँ आस पास कुछ कान्वेंट स्कूल तथा अन्य शासकीय स्कूल भी मौजूद है, इन विद्यालयों के बीच मेरा विद्यालय बच्चों की शिक्षा के लिए पूर्ण रूपेण समर्पित विद्यालय के रूप में आज जाना व पहचाना जाता है | इसकी चर्चा जन क्षेत्र के साथ साथ शासकीय क्षेत्र में भी सम्मान के साथ किया जाता है | लोक सेवा की दृष्टि से विद्यार्थियों को शासन की मंशा अनुरूप तथा जन अपेक्षा की दृष्टि से सब प्रकार से अनुकूल बनाना एक चुनौती पूर्ण कार्य रहा है | मेरी पदस्थापना सन 2013 में नगरीय निकाय क्षेत्र में सहायक शिक्षक के पद पर प्राथमिक शाला – कुम्हारपारा, विकासखण्ड व जिला – नारायणपुर में हुई थी | मेरी नियुक्ति के समय इस विद्यालय में जो मुझे भौतिक चक्षु से ज्ञात हुआ की दर्ज संख्या होने के बावजूद बच्चों की शैक्षणिक दसा संतोषप्रद नहीं थी,तब यंहा पर दो अन्य शिक्षक भी पदस्थ थे और मुझे मिलकर अब संख्या तीन हो चुकी थी, मैंने अपने साथी शिक्षको एवं प्रधान अध्यापक को विश्वास में लेकर विद्यालय की शैक्षणिक स्तिथि तथा भौतिक दशा को बदलने का निश्चय किया और इस हेतु मैंने सबसे पहले पालकों के मन में इस विद्यालय का स्थान गरिमा पूर्ण कैसे हो इसके लिए शैक्षणिक गुणवत्ता को केन्द्र में रख कर कार्य प्रारम्भ किया, परन्तु मेरे समक्ष एक ऐसी चुनौती थी जिसमे मेरे शैक्षणिक गतिविधियों के अनुभव की कमी आड़े आ रही थी, इसके लिए मैंने उचित रणनीति बनाने की प्रक्रिया के तहत विभाग के कुछ शिक्षा विदों से संपर्क किया तथा समस्या के समाधान कैसे हो, विद्यालय कैसे आम जनों के ह्रदय में स्थित हो पाए तथा सम्मान पा सके, साथ ही साथ बच्चों की शैक्षणिक दशा में आसातीत सुधार कैसे हो, इन विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय प्राप्त कर अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर हो चली | मुझे विश्वास था की दूध से दही,दही से मक्खन,मक्खन से घी बनना जितना कठिन था उससे ज्यादा कठिन था मुझे अपने उदेश्यों की प्राप्ति करना |


अध्ययन की पृष्ठ भूमि :-

                                                   सर्वप्रथम मैंने समस्या की पहचान कर उसके निराकरण हेतु चिंतन करना उचित  समझा, शिक्षण के दौरान होने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओ को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया तथा गहन अवलोकन, मूल्यांकन और शिक्षण के दौरान होने वाली अनुभूतियो को मैंने इसका आधार बनाया और इस दिशा में कार्ययोजना तैयार कर समस्या का चिन्हांकन, समस्या का निराकरण हेतु किये जाने वाले विभिन्न चरण बद्ध बिंदु क्या होने चाहिए, तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त होने वाले निष्कर्ष की सूची दूसरी कक्षा के अलग अलग विषयों में अन्य शिक्षको के द्वारा कराये जाने वाले शैक्षणिक क्रिया कलापों का अवलोकन कर उसका निष्कर्ष निकलकर अपने अनुप्रयोगों में शामिल किया | अध्ययन की पृष्ठ भूमि के अंतर्गत विद्यार्थी जिस समुदाय से आते है उन समुदायों से परिचय बढाना, उन्हें समझना, घर की शैक्षिक परिवेश का पता लगाना और उनसे आत्मिक सम्बन्ध बनाकर समस्यायों पर चर्चा करना आवश्यक प्रतीत हो रहा था, जिसके लिए मैंने सर्वप्रथम पालकों से बात करना मुनासीब समझा और निकल पड़ी अपने उद्येश्यों की पूर्ति के लिए पालकों से चर्चा करने, जिसके लिए मुझे शाम का समय सर्वाधिक उपयुक्त महसूस हुआ | शाला की छुट्टी के पश्चात् मैं बच्चों को साथ लेकर ही पालकों से मिलने के लिए उनके घर पहूंच जाती थी, वंहा उनके साथ बैठकर शिक्षण सम्बन्धी विभिन्न मुद्दों पर चर्चा मेरे द्वारा किया जाता था, नित्य इन प्रक्रियायों से मेरे साथ पालकों का जुड़ाव होने लगा, जिसके बाद बच्चों के सर्वांगींण विकास हेतु बनाये जाने वाली मेरी योजनाओ के क्रियान्वयन में पालको का सहयोग मुझे प्राप्त होते गया | धीरे धीरे बच्चों की नियमित उपस्तिथि पूर्व कि तुलना में बड़ने लगी जिससे की मेरे प्रयाशों को मनो पंख लग गयें, मैंने उड़ान जारी रखा और अपने ढृढ़ संकल्प व प्रयासों से अपने लक्ष्य के समीप पहुचने लगी |


                                




                             शैक्षणिक गुणवत्ता के क्रियान्वयन के लिए सबसे महत्वपूर्ण था बच्चों को सीखने के लिए प्रेरित करना,परन्तु सीखने के लिए प्रेरित कैसे किया जाये, उनमे रूचि का विकास कैसे हो, जिज्ञासा की अभिवृत्ति किस प्रकार किया जाये, इन सभी समस्यों के निराकरण के लिए नवाचार ही सबसे बड़ा अस्त्र रूप में काम आया और इसके लिए मैंने शिक्षण में सरल से सरल विधि जैसे :- खेल खेल में शिक्षण, सहायक शिक्षण सामग्री निर्माण को शामिल किया जो बच्चों में आकर्षण का केंद्र बना जिसके बाद विषय वस्तु सुगमता के साथ बच्चों को समझ आने लगी, अब बच्चे स्वयम से शिक्षण में रूचि लेने लगे और अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को समझकर उसका निर्वहन करने लगे |

नवाचार का अर्थ :- नवाचार एक ऐसा प्रयोग है जो शिक्षा को सरल, रुचिकर, उपयोगी बनाती है, साथ ही साथ बच्चों के विभिन्न कौशलों को विकसित करती है जिससे सीखने की गति में आशातित वृद्धि होती है |

नवाचार की विशेषताएँ और लाभ :-

नवाचार एक ऐसा तरीका है जिसे हम किसी काम के नये स्वरुप के रूप में ले सकते है |

नवाचार से कोई न कोई नवीन विचार या स्वरुप की प्राप्ति होगी |

नवाचार एक नवीन प्रयास और परिणाम प्राप्ति का तरीका है |

नवाचार को परिणाम प्राप्ति हेतु बहुत ही क्रमबद्ध और योजनाबध्द तरीके से लागू करना पड़ता है |

 नवाचार के द्वारा परिस्तिथियों में सुधार लाने का प्रयास किया जाता है |

प्रचलित विधियों में बदलाव व अधिक लाभ प्राप्ति हेतु हमें नवाचार का उपयोग करना चाहिए |

नवाचार एक विचार है जिसे स्वीकार करने वाले उसे नवीन विचार मानते है |

शिक्षा में नवाचार :-

                          शिक्षण प्रक्रिया में नवाचार का होना वर्तमान समय में अत्यंत लाभकारी है, कहते हैं नित नए प्रयोगों से बच्चों के सीखने की गति बढती है जिसके लिए वर्तमान शिक्षक को अपने कौशलों, दक्षताओं, शिक्षण विधियों में परिवर्तन करना अत्यंत आवश्यक है | विद्यार्थियों के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए शिक्षकों को स्वयं के नए तरीकों से अवगत होने की आवश्यकता है जिसके लिए इन्टरनेट एक सशक्त माध्यम के रूप में सामने आया है | शिक्षक अपने खोज एवं प्रयोगों द्वारा शिक्षण विधि को सुगम बनाकर शिक्षा को सुदृढ़ बना सकता है | पूर्व से प्रचलित जो शिक्षा में विधियाँ, प्रविधियां चली आ रही है उसमे हमें लगातार परिवर्तन की आवश्यकता रहती है, जिसके लिए हमें लगातार नयें नयें प्रयोग करते रहना चाहिए, जिसमे हमें लगातार नयें विचार व तरीकों की आवश्यकता पड़ती है | शिक्षा में हमें नए नए प्रयोग करते रहना चाहिए जिससे की बच्चों में हमेशा शिक्षा के प्रति रूचि बनी रहे, पहले के समय में हम देखा करते थे की किस तरह एक ही तरीके से पढाई में शिक्षक द्वारा लगातार काम किया जाता था, जिससे बच्चों में पढाई के प्रति रूचि की कहीं कहीं कमी देखने को मिलती थी, जिसको हम एक कारण बच्चों के शाला के प्रति लगाव की कमी का हम मान सकते है |

विधियाँ और कार्यप्रणाली :-


                          




 


                                         कक्षा में “दीप जले” पाठ के  अध्यापन के दौरान नवचारी शिक्षण पद्धति की महती आवश्यकता उस वक्त महसूस हुई जब बच्चों से कुछ प्रश्न जैसे दीया किससे बनाया जाता है ? कौन बनाता है ? कैसे बनता है ? जिसका उत्तर बच्चों से अपेक्षाकृत कम प्राप्त हुआ इसके लिए सामाजिक अंत:क्रियात्मक नवाचार को अपनाया गया जिसके अंतर्गत किसी संस्था या समूह से बातचीत करके उक्त प्रक्रिया को शिक्षण में शामिल किया जाता है| इस पद्धति के गुण – दोष दोनों को देखा जाता है | फिर पाठशाला के सभी बच्चों को लेकर मैं कुम्हार के घर गयी, वहाँ हमने देखा की कुम्हार घड़े बना रहा था | बच्चे बड़ी ही उत्सुकता से घड़े को बनता हुआ देख कर उसे निहारने लगे और कुम्हार से बोले “काका आप इस मिट्टी को कैसे बहुत सुंदर आकार देते है,जिससे मिट्टी से बर्तन,घड़े,गमला,दिये आदि का निर्माण हो जाता है”, फिर कुम्हार के द्वारा पूरी प्रक्रिया समझायी व दिखाई गयी कैसे पहले मिट्टी को गिला कर चाक पर आकार दिया जाता है फिर सुखा कर उसे आग में पकाया जाता है | बच्चों के द्वारा बड़ी ही उत्सुकता के साथ कुम्हार के घर में सारी प्रक्रिया का अवलोकन किया गया |   

                                            बच्चों ने यहाँ पर देखा की किस प्रकार कुम्हार चाक पर मिट्टी रख कर घुमाता है और किस प्रकार उस मिट्टी को आकार देकर बर्तन,दीया,आदि का निर्माण करता है | फिर गिले बर्तन को किस प्रकार सावधानी पूर्वक सुखा कर उसे आग में पकाया जाता है तब जाकर एक मजबूत व सुंदर बर्तन हमें देखने को मिलती है | कुम्हार काका के द्वारा भी बच्चों को गमला,बर्तन,दीयें बनाना सिखाया गया, बच्चों ने भी पुरी तन्मयता व उत्सुकता के साथ चाक चलाना और बर्तन बनाना सीखा |

                  बच्चों ने कुम्हारकाका के घर एक बहुत ही अचंभित करने वाली प्रक्रिया देखी जिसमे उन्होंने देखा की कैसे कुम्हार एक अधसूखी बर्तन या हल्की गीली बर्तन के आकार में परिवर्तन करता है | कुम्हार के द्वारा उस हल्की सुखी बर्तन को औजार से पीट-पीटकर उसे बड़ा कर देते है | यहाँ पर कुम्हार अपने हाथ के सहारे से बर्तन को उठा कर मटके को बड़ा करता है |

उक्त नवाचार से लाभ:-

                ֍   नवनिर्मित विकास

                ֍    परंपरागत वस्तुओं की जानकारी

                ֍    मिट्टी के बर्तन का उपयोग

                ֍    स्वास्थ्य के लाभ या हानि की जानकारी

                ֍    ऐतिहासिक वस्तुओं के बारे में जानकारी 

֍ नवनिर्मित विकास :- 

                            चाक में बर्तन निर्मित होते हुए देख बच्चों में कौतुहल बना हुआ था वे सभी बहुत ही शांत गंभीर होकर पूरी प्रक्रिया को देख रहे थे जिससे उनके कलात्मक कौशल का विकास हो रहा था |







֍ परंपरागत वस्तुओं की जानकारी :- 

                              मिट्टी से बर्तन निर्माण कार्य कुम्हार समुदाय का परंपरागत पेशा है  जहाँ विभिन्न प्रकार के कलाकृति देखने को मिली, जिससे बच्चों को परंपरागत वस्तुओं की जानकारी का अनुभव प्राप्त हुआ, जैसे पुराने समय में मिट्टी के बर्तन का प्रयोग खाना बनाने, पानी भरने के बर्तन आदि का इस्तेमाल किया जाता था | आज वर्तमान स्वरूप भले ही बदला है परन्तु परंपरागत वस्तुओं का प्रयोग कई इलाकों में होता है खांसकर ग्रामीण क्षेत्रो में, जहाँ पर आज भी मिट्टी के बर्तनों का उपयोग पीने के पानी भरने में हो या खाना बनाने में बहुत देखने को मिल सकता है | खासकर हम बस्तर के निवासियों के लिए बहुत ही प्रचलित व बहुत ही ज्यादा उपयोग में लायी जाती है , मिट्टी के बर्तनों का उपयोग यंहा पर सबसे ज्यादा खाना बनाने में किया जाता है, यहाँ पर हमें बहुत ही ज्यादा अलग अलग स्वरूपों के बर्तन देखने को मिलते है जिसमे अलग अलग प्रकार के खाना बनाने हेतु अलग अलग प्रकार के बर्तनों का उपयोग किया जाता है और आज भी ग्रामीण परिवेश में बहुत ही ज्यादा मिट्टी के बर्तनों के उपयोग हम देख सकते है |


֍ मिट्टी के बर्तन का उपयोग :-

                             हमें ज्यादा से ज्यादा मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करना चाहिए , जितना हम प्राकृतिक चीजो के पास रहते है ,उतना ही हमें उर्जा मिलती है | प्राचीन काल में हमारे पूर्वजो के द्वारा मिट्टी से निर्मित बर्तनों का ही उपयोग किया जाता रहा है, जिससे हमें देखने को मिलता था की खाना बनाने के बर्तन हो, चाहे पानी पीने के बर्तन हो या अन्य दैनिक उपयोग के बर्तन हो सारी चीजें मिट्टी से बनी होती थी, जो शुद्धता, स्वक्षता का एक पर्याय हुआ करता था | इसी के साथ साथ हम प्रदुशन से भी अपने प्रकृति की रक्षा कर सकते है, इसी विषय पर आगे बच्चों से चर्चा करते हुए मैंने उन्हें समझाने का प्रयास किया की मिट्टी के बर्तनों के निर्माण व आधुनिक बर्तनों के निर्माण में किस प्रकार से मिट्टी से निर्माण में पूर्ण रूप से प्राकृतिक परंपरा या विधि व प्राकृतिक वस्तु का उपयोग किया जाता है, वहीँ जब आधुनिक बर्तन के निर्माण की बात जब आती है तो उसमे बहुत से रसायन, नुकसानदायक तत्वों का उपयोग किया जाता है |

 

 ֍ स्वास्थ्य के लाभ या हानि की जानकारी :-

                              पहले खाना बनाने के बर्तन हो चाहे पानी पीने के बर्तन हो या अन्य दैनिक उपयोग के बर्तन हो सारी चीजें मिट्टी से बनी होती थी, जो शुद्धता, स्वच्छता का एक पर्याय हुआ करता था , जिससे हमारे पूर्वज कम बीमार पड़ते थे, साथ ही इनकी औसत आयु भी ज्यादा हुआ करती थी मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से हमारे भोजन में उपस्थित पोषक  तत्व सही मात्रा में विद्यमान रहते है ,भोजन में पोषक तत्वों की कमी से हम कमजोर और बीमार पड़ सकते है  अतः यह कहा जा सकता है मिट्टी के बर्तन स्वास्थ्यगत दृष्टि से अत्यंत लाभकारी होते है | इस सम्बन्ध में मैंने हमारे बस्तर के प्रचलित दाल बनाने के तरीके के माध्यम से समझाने का प्रयास किया,जिसमे मैंने बताया की किस प्रकार आधुनिक दाल पकाने हेतु कुकर और पारंपरिक दाल पकाने हेतु मिट्टी के बर्तन में पके हुए दाल में किस प्रकार बहुत अन्तर होता है, दोनों बर्तन में पके हुए दाल में किस प्रकार स्वाद में भी बहुत अन्तर होता है, जिस पर बच्चों ने बताया कि हाँ दोनों अलग अलग बर्तनों में पके हुए दाल के स्वाद में बहुत अन्तर महसूस होता है | इसी प्रकार से अन्य उदाहरणों के माध्यम से बच्चों में मिट्टी के बर्तन के लाभ को समझा सकते है | 

֍ ऐतिहासिक वस्तुओं के बारे में जानकारी :-

                         कुम्हार के पास जब मैं बच्चों को लेकर गयी तब मिट्टी के बर्तनों के उपयोग के साथ साथ हमारे पूर्वजों के बारे में और पुराने समय में मिट्टी के बर्तनों के उपयोग के बारे में जानकारी दे रही थी तभी कुछ बच्चों द्वारा पुराने समय के बारे में और भी विस्तृत जानकारी चाही गयी, जिस पर मैंने बच्चों की जिज्ञासा का सम्मान करते हुए और साथ ही मेरी जिम्मेदारी भी होती है की उनके सवालों का जवाब मैं दूँ, और इस दिशा में मैंने आगे काम करते हुए बच्चों से बहुत से पुराने समय और ऐतिहासिक चीजें व ऐतिहासिक इमारतों के बारे में चर्चा शुरू की, कुछ सवाल मैंने भी बच्चों से पूछा, तब मुझे पता चला की बच्चों को इस सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी है | फिर मैंने हमारे इतिहास के सम्बन्ध में और जो पुराने समय में जिन चीजों का उपयोग हमारे पूर्वज किया करते थे वे सभी चीजें आज हमारे लिए ऐतिहासिक हो गयीं है,जैसे की पुराने समय में मिट्टी के बर्तनों का जब विकास हुआ और हमारे पूर्वज बर्तनों के उपयोग की ओर अग्रसर हुए तब के समयानुशार हम कल्पना कर सकते है की किस प्रकार हमारे पूर्वजो ने ये सोचां होगा की हम मिट्टी से भी बर्तन बना सकते है ठीक इन छोटी छोटी चीजो के बारे में चर्चा करते हुए आगे बड़ते हुए मैंने बच्चों को ऐतिहासिक इमारतों के सम्बन्ध में चर्चा शुरू की और उन्हें कल्पना के उस सागर की और लेकर चली गयी जिस ओर मैंने उन्हें समझाने का प्रयास किया की आज के इस आधुनिक काल में हमारे पास इतनी आधुनिक मशीने होने के बावजूद उस तरह के कार्य नहीं कर पाते है जिस प्रकार के कार्य हमारे पूर्वजों द्वारा पूर्व में किये गए है | इसमे सबसे ज्यादा हम ऐतिहासिक इमारतों के विषय में समझ व समझा सकते है, बच्चों को मैंने बहुत से ऐतिहासिक इमारतों के चित्र और चलचित्र के माध्यम से समझाने का प्रयास किया |

डेटा, विधियाँ और कार्यप्रणाली :-

                                   सामाजिक अंतःक्रियात्मक नवाचार में हमें सामाजिक लोगों के साथ - साथ गतिविधियों पर नियंत्रित रूप से कार्य करने की आवश्यकता होती है, जो की हमें एक नए प्रक्रिया के साथ साथ बच्चों के नैतिक विकास में भी सहायक होती है | यहाँ पर हम जब डेटा संकलन की बात करते है तो हमें सर्वप्रथम सामाजिक क्रियाकलापों को समझने की आवश्यकता होती है, जिसमे की बच्चों के परिवेश के साथ उनके घर, पालकों के रहन सहन के अनुसार, हमें नवाचार का चयन करना पड़ता है | जब तक हम बच्चों के अनुसार नवाचार का चयन नहीं करेंगे तब तक हम सफलता की ओर नहीं बड सकते है | मैंने अभी सामाजिक अंतःक्रियात्मक नवाचार हेतु कुम्हार से सहयोग की बात सोंची, चूँकि मुझे बच्चों के साथ दीप जले पाठ के समय संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं मिला जिससे मुझे नवाचार की आवश्यकता महसूस हुयी, की क्यू ना कुम्हार से सहयोग लेकर बच्चों को मिट्टी से बनने वाले सामानों के साथ इसके बनने की प्रक्रिया,महत्त्व की भी जानकारी दी जा सकती है | इस दिशा में कार्य करते हुए मैंने सर्वप्रथम सभी बच्चों को लेकर कुम्हार के घर ले गयी, जहाँ पर कुम्हार के द्वारा विभिन्न प्रकार के बर्तनों का निर्माण किया जा रहा था, जिसको देखते ही बच्चों के चेहरों पर बहुत ही आश्चर्य बोध व उत्सुकता का भाव देखने को मिला |


                                                                                                       

                                    यहाँ पर कुम्हार के द्वारा भी बहुत ही लगाव के साथ बच्चों को पूरी प्रक्रिया समझायी गयी, जहाँ पर कुम्हार ने बताया की हम कैसे सर्वप्रथम एक अच्छी मिट्टी का चयन करते है, फिर उस मिट्टी को चाक पर रखने लायक तैयार करना पड़ता है, मिट्टी को गिला कर अच्छे से गुथा जाता है जब मिट्टी चाक में चढाने लायक जब हो जाती है तो चाक पर मिट्टी रख बर्तन बनाने की प्रक्रिया की ओर आगे बड़ा जाता है, जहाँ पर कुम्हार चाक को घुमाते जाता है और मिट्टी के लोंदे को किस प्रकार एक बहुत ही सुंदर आकार प्रदान करते जाता है | कुम्हार के द्वारा लगातार जानकारी दी जाती रही और साथ ही बच्चों से भी इस प्रक्रिया को साथ - साथ दोहराते हुए खुद से करके सीखने हेतु प्रेरित किया गया | यहाँ पर बच्चों के द्वारा कुम्हार से लगातार बहुत ही रोचक प्रश्न भी पूछे गए जिसका लगातार कुम्हार के द्वारा जवाब देने का प्रयास भी किया गया | बच्चों की लगभग सभी जिज्ञासाओं की परिपूर्ति मेरे द्वारा करने का प्रयास किया गया |

सिद्धांत / वैचारिक ढान्चा :-

                   ट्रायसेन के अनुसार – “शैक्षिक नवाचारों का उद्भव स्वतः नहीं होता वरन इन्हें खोजना पड़ता है तथा सुनियोजित ढंग से इन्हें प्रयोग में लाना होता है, ताकि शैक्षिक कार्यक्रमों को परिवर्तित परिवेश में गति मिल सके और परिवर्तन के साथ गहरा तारतम्य बनाये रख सके |”

                   नवाचार दो शब्दों के योग से बना है नव + आचार, यहाँ पर नव शब्द का अर्थ नया या नवीन से है वहीं आचार शब्द का अर्थ व्यवहार / रहन - सहन से ले सकते है, अर्थात नवाचार वह प्रक्रिया है जो पूर्व की स्तिथि या प्रचलन में नवीनता का संचार करे | 

परिणाम और विश्लेषण :-

                       उक्त नवाचार को करने के पूर्व और पश्चात् जो चमत्कारिक परिवर्तन निकलकर आया वो अत्यंत लाभकारी साबित हुआ | मैंने पाया कि पहले जहाँ बच्चों द्वारा न के बराबर उत्तर प्राप्त होता था आज उसके विपरीत बच्चे अत्यंत उत्साहित होकर आत्मविश्वास के साथ न केवल उत्तर देते है बल्कि सामूहिक चर्चा के माध्यम से विषयों पर अपनी समझ अनुसार राय भी रखते है,साथ ही साथ समुदाय से भी जुडाव हुआ है | पहले जहाँ विद्यार्थियों को सिखाने के लिए स्कूल ही एक जरिया हुआ करता था, पालकों या अन्य व्यक्तियों का सहयोग शून्य हुआ करता था, आज उसके विपरीत  समुदाय भी सिखाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है | गृह कार्य जैसे अतिमहत्वपूर्ण विषयों पर पालक अब स्वयं से रूचि लेने लगे है जिसके कारण वो बच्चों को अब वक्त देने लगे है | इस कारण शिक्षा का स्तर भी ऊँचा उठा है और सीखने – सिखाने की प्रक्रिया अत्यंत रोचक  हो चुकी है |

बच्चों द्वारा स्वयं से मिट्टी के उपयोग से घर का प्रतिरूप निर्माण करते हुए साथ ही खण्ड स्तरीय प्रदर्शनी में प्रस्तुति देते हुए । 

चर्चा :-

                  सिखाने की उक्त क्रिया वर्तमान परिवेश में अत्यंत महत्वपूर्ण है | गतिविधि आधारित शिक्षण प्रक्रिया में एक ओर जहाँ बच्चों का ज्ञान मूर्त रूप लेता है वहीं शिक्षक की प्रतिभा भी निखरती है | इस तरह के नवाचार के माध्यम  से सीखने – सिखाने की प्रक्रिया को बल मिलता है | लगातार एक ही तरीके से पठन – पाठन का माध्यम कहीं न कहीं विषय को बोझिल कर सकता है जिसके लिए हमें सतत अपने तरीकों में परिवर्तन करते रहना चाहिए, इसके लिए नवाचार एक बहुत ही सुगम, सुंदर, रोचक और लाभदायक माध्यम हो सकता है | नवाचार के निर्माण हेतु हमें सदैव अपने आस – पास के परिवेश से कुछ नया खोजने का प्रयास करना चाहिए जो की आसानी से उपलब्ध हो सके और बच्चों के समझ के विकास में ज्यादा से ज्यादा सहायक हो | समुदाय व समाज का सहयोग और भी ज्यादा लाभदायक होता है |

निष्कर्ष :-

                     नवाचार की इस पद्धति से मैंने अपनी शाला के विद्यार्थियों में आशातीत परिवर्तन पाया | उनमे ज्ञानार्जन के साथ साथ वाककौशलों का भी विकास हुआ | बच्चे अब पहले से ज्यादा उत्साहित होकर पढाई करते है जिसके कारण शाला का वातावरण भी पहले से काफी ज्यादा बदल चूका है , समुदाय का  सहयोग मिलने से न केवल शाला की दर्ज संख्या बढ़ी है बल्कि आधारभूत आवश्यकताओं की भी पूर्ति में सहयोग प्राप्त हुआ है |


अतिरिक्त जानकारी :-  

शिक्षा में सहयोग एवं नवीन कार्यो हेतु मुझे मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण पुरुस्कार ( शिक्षा दूत ) प्रदान किया गया |

हमारे संस्था के छात्र – छात्राओं का मेरे एवं संस्था शिक्षकों के सहयोग से उच्च शिक्षा संस्थान :-जवाहर नवोदय विद्यालय * एकलव्य विद्यालय   * आदर्श बालक बुनियादी विद्यालय   जैसे संस्थानों में लगातार चयन होते रहा है 

लक्ष्यवेध सहभागिता में कोविड – 19 के दौरान सहयोग हेतु शून्य निवेश बिना शिक्षा सम्मान प्राप्त हुआ |

डिजिटल सामग्री के गुणवत्ता की जाँच कर बेहतर सामग्री को एप्रूव करने हेतु मुझे छत्तीसगढ़ शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा सम्मान प्राप्त हुआ |

पढ़ई तुन्हर दुआर 2.0 अंतर्गत उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मान प्राप्त 

शिक्षक कला व साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ द्वारा “ शिकसा विशिष्ट सेवा सम्मान “ प्राप्त हुआ |


सन्दर्भ :-

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान नारायणपुर, प्राचार्य श्री जी. आर. मंडावी सर का मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद |

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान नारायणपुर के आकादमिक सदस्यों का सतत मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद |

खण्ड शिक्षा अधिकारी जी का सतत मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद |

संकुल समन्वयक, संकुल केन्द्र – महावीर चौक का सतत मार्गदर्शन एवं सहयोग |

समन्वयक, खण्ड संसाधन केन्द्र नारायणपुर ( बीआरसी ) सर का मार्गदर्शन |

शाला परिवार प्राथमिक शाला कुम्हारपारा के प्रधान पाठक श्री बिसनाथ बघेल सर एवं साथी शिक्षकों का सतत मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद |

शाला समुदाय का सतत मार्गदर्शन एवं सहयोग |

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