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हसदेव जंगल कटत हवय

 (हसदेव जंगल कटत हवय)

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हसदेव  जंगल  कटत हवय,

एकर  कटैया  कोन  हवय।

पूछत  हावय  वनवासी मन,

नेता मंत्री  जमो मौन हवय।।


आदिवासी देख ठगावत,जो,

 जंगल  के   रखवार  हवय।

रोज कटावत सनघन जंगल,

आँखी  मूंदे  सरकार हवय।।


रूख-राई  जंगल  के  गहना,

हरियाली एकर सिंगार हवय।

शुद्ध   हवा,  पानी   बरसैया,

पर्यावरण के रखवार हवय।।


जंगल  के  दुर्दशा   होवत हे,

पेड़ जीव  के होवय करलाई।

लकड़ी कोयला में नजर लगे,

पेड़ कटैया रोज खाये मलाई।।


बेंदरा, भालू, कोलिहा, मिरगा,

छिड़ी -बिड़ी,भागे  शहर डहर।

काला  खाहीं, कहाँ   लुकाही,

भटकत  हावय  दर-दर - दर।।


खोंधरा माड़ा,जमो चातर होगे,

चिरई -चिर गुन  कहाँ लुकाय।

नइ  बोलत हे पड़की  परेवना,

मंजूर कोयलिया काला खाय।।


जल  जँगल  जमीन  में  इहाँ,

 रोज  छेड़छाड़  बड़ होवत हे।

मनखे के ये  करतूत  देख के,

प्रकृति  घलो  अब  रोवत हे।।


पेड़ झन काटो, पेड़ लगावव,

अब झन करो जी अत्याचार।

पेड़ जमो कट जाही त संगी,

हो जाही  जिनगी  अँधियार।।

✍️ ईश्वर भास्कर ग्राम -किरारी  

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