एक गांव में एक लकड़हारा रहता था वह रोज सुबह जंगल जाता और वहां से सूखे पेड़ों से लकड़ियां काटता लकड़ियों को वह पास के शहर जाकर भेज आता इसी से उसे जो पैसा मिलता उससे वह अपना और अपने घर का खर्चा चलाता था।
लकड़हारा गरीब जरूर था मगर इमानदार और सच्चाई के रास्ते पर चलने वाला था वह अपनी मेहनत पर विश्वास करता था लालच की भावना उसमें बिल्कुल नहीं थी उसने अपने बेटे को भी हमेशा ईमानदारी के रास्ते पर चलने की शिक्षा दी थी।
एक बार लकड़हारा बीमार पड़ गया काफी दिनों तक वह लकड़ी काटने नहीं जा पाया जब घर का खर्च चलाना कठिन हो गया तो उसने अपने बेटे किशन को लकड़ी काटने जंगल भेजा।
सीता की बात मानकर किसान कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर निकल पड़ा जंगल में पहुंचकर उसने सूखे पेड़ों की तलाश की एक नदी के किनारे उसे सूखा पेड़ दिखाई दिया वह पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काटने लगा।
अभी वह कुछ लकड़ियां ही काट पाया था कि उसके हाथों से कुल्हाड़ी छूट गई उसके देखते ही देखते कुल्हाड़ी नदी में जा गिरी कुल्हाड़ी के नदी में डूबते ही किशन घबरा गया उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करें नदी गहरी थी और किशन को देना भी नहीं आता था किसान चिंता में पड़ गया कि अगर कुल्हाड़ी नहीं मिली तो वह लकड़ी कैसे काटेगा अगर लकड़ी नहीं काटा पाया तो घर के खर्च पिता के इलाज के लिए पैसे कहां लाएगा घर में तो इतने पैसे भी नहीं थे कि वह दूसरी कुल्हाड़ी खरीद पाता।
इसी उधेड़बुन में डूबा किशन नदी के किनारे बैठा रहा उसे बैठे-बैठे काफी देर हो गई तभी किशन की नजर नदी में उड़ते बुलबुले पर पड़ी एकाएक नदी से एक जलपरी प्रगट हुई जलपरी नहीं किशन से उसकी उदासी का कारण पूछा कि अपने आप बीती सुना डाली जलपरी ने कहा ठहरो मैं अभी तुम्हारी कुल्हाड़ी ढूंढ कर लाती हूं उसे देखता रह गया है जलपरी पानी में डूब गई और कुछ ही देर में अपने हाथों में सोने की कुल्हाड़ी लेकर प्रगट हुई जलपरी बोली लो यह तुम्हारी कुल्हाड़ी उसकी कुल्हाड़ी नहीं है वह बोला यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।
जलपरी ने उससे प्रतीक्षा करने को कहा और फिर जल में डूब गई थोड़ी देर बाद वह फिर प्रकट हुई इस बार उसके हाथों में चांदी की कुल्हाड़ी थी किशन को कुल्हाड़ी देते हुए वह बोली लो यह तो जरूर तुम्हारी ही कुल्हाड़ी होगी।
किशन बोला मेरी कुल्हाड़ी सोने चांदी की नहीं थी वह तो लोहे की थी मुझे तो वही चाहिए मैं दूसरों की कुल्हाड़ी नहीं ले सकता जलपरी फिर से जलमग्न हुई थोड़ी ही दूर में वह किशन की लोहे वाली कुल्हाड़ी लेकर चल जल से बाहर निकली अपनी कुल्हाड़ी देखते ही किशन प्रसन्न हो गया जलपरी को धन्यवाद देते हुए वह बोला यही है मेरी कुल्हाड़ी मैं इसी से लकड़ी काट रहा था।जलपरी उसकी इमानदारी और नेक नियति से बहुत प्रसन्न हुई मुस्कुराते हुए वह किशन से बोली मैं जानती थी कि तुम्हारी कुल्हाड़ी लोहे की है मैं सिर्फ तुम्हारी ईमानदारी की परीक्षा ले रही थी मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं मैं तुम्हें यह सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी इनाम में देती हूं किशन बहुत पसंद हुआ तीनों कुल्हाड़ी लेकर वह घर पहुंचा पीता को सारी बात बताई पीता भी उसकी इमानदारी से खुश हुआ सोने चांदी की कुल्हाड़ी या बेचकर किसान ने अपने पिता का इलाज कराया और उसकी गरीबी दूर हो गई।
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Very nice
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