बुद्ध पूर्णिमा, जिसे बुद्ध जयंती या वेसाक के नाम से भी जाना जाता है, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र दिन है । यह पावन अवसर न केवल बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए विशेष महत्व रखता है, बल्कि हिंदू धर्म में भी इसका गहरा सम्मान है । यह त्योहार भगवान बुद्ध के जीवन की तीन सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं - उनके जन्म, ज्ञान की प्राप्ति (बुद्धत्व), और महापरिनिर्वाण (मृत्यु) - का स्मरण कराता है । इसी कारण से, इसे 'त्रिसंयोजित पर्व' के रूप में भी जाना जाता है । भारत में बौद्ध धर्म की उत्पत्ति और बाद में हिंदू धर्म में बुद्ध को भगवान विष्णु के एक अवतार के रूप में शामिल करने से इन दोनों प्रमुख धर्मों के बीच एक गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित होता है, जिससे बुद्ध पूर्णिमा दोनों समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार बन जाता है।बुद्ध पूर्णिमा को विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है । उदाहरण के लिए, श्रीलंका में इस महत्वपूर्ण दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो 'वैशाख' शब्द का ही एक रूप है । एशिया के अन्य देशों में भी इसके अलग-अलग नाम हैं; बांग्लादेश में इसे बुद्ध पूर्णिमा (বুদ্ধ পূর্ণিমা) कहा जाता है , कंबोडिया में बुद्ध का जन्मदिन विसाक बोचेया के रूप में मनाया जाता है ,और चीन में इसे फ़ोदान (佛誕) के साथ-साथ युफ़ू जी (浴佛節) और अन्य नामों से भी जाना जाता है । यह पवित्र त्योहार चंद्रमास पंचांग के अनुसार वैशाख महीने की पूर्णिमा (पूर्णिमा) के दिन मनाया जाता है । ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ चंद्रमास की तिथियों में अंतर के कारण, यह तिथि हर वर्ष बदलती रहती है, लेकिन आमतौर पर अप्रैल या मई के महीने में आती है । वर्ष 2024 में बुद्ध पूर्णिमा 23 मई को मनाई गई थी , जबकि 2025 में यह 12 मई को मनाई जाएगी 2। वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख पूर्णिमा तिथि 11 मई को रात 08 बजकर 01 मिनट पर शुरू होगी और 12 मई को रात 10 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी, और उदयातिथि के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा 12 मई 2025 को मनाई जाएगी । इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि पारंपरिक भारतीय चंद्र कैलेंडर, जो चंद्रमा के चरणों पर आधारित है, बुद्ध पूर्णिमा के समय निर्धारण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और यह प्राचीन प्रणाली आज भी धार्मिक अनुष्ठानों को प्रभावित करती है।बुद्ध पूर्णिमा मुख्य रूप से गौतम बुद्ध (जिन्हें राजकुमार सिद्धार्थ गौतम के नाम से भी जाना जाता है) के जन्म की स्मृति में मनाई जाती है । उनका जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व वैशाख मास की पूर्णिमा को लुंबिनी, शाक्य राज्य (जो वर्तमान में नेपाल में स्थित है) में हुआ था । हालांकि, कुछ स्रोतों में जन्म का वर्ष 623 ईसा पूर्व 19, ईसा पूर्व 536 24, या ईसा से 563 साल पहले 21 भी बताया गया है। इतिहासकारों के अनुसार, बुद्ध का जीवनकाल 563-483 ईसा पूर्व के मध्य माना जाता है । उनके पिता कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन थे, और उनकी माता का नाम महामाया था । इन भिन्नताओं के बावजूद, यह स्पष्ट है कि बुद्ध का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास हुआ था, और वैशाख पूर्णिमा का दिन उनके आगमन का प्रतीक है। बुद्ध पूर्णिमा का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध को बिहार के बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे गहन तपस्या के पश्चात सत्य और ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । गृह त्याग के बाद राजकुमार सिद्धार्थ ने सत्य की खोज में सात वर्ष बिताए, और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें यह दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ । कुछ स्रोतों के अनुसार, 35 वर्ष की आयु में 49 दिनों के निरंतर ध्यान के बाद उन्हें उरुवेला (बोधगया) में पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ । इस ज्ञान प्राप्ति के क्षण से ही वे 'बुद्ध' कहलाए, जिसका अर्थ है 'जागृत' या 'ज्ञानवान'। इस प्रकार, वैशाख पूर्णिमा न केवल उनके जन्म का प्रतीक है, बल्कि उनकी आध्यात्मिक यात्रा के शिखर और बौद्ध धर्म की नींव का भी प्रतीक है। बुद्ध पूर्णिमा का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता, क्योंकि इसी पावन तिथि पर भगवान बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व में 80 वर्ष की आयु में 'कुशनारा' (वर्तमान कुशीनगर) में अपना महापरिनिर्वाण (शरीर त्याग) भी प्राप्त किया था । इस प्रकार, यह दिन उनके पूरे जीवन के तीन सबसे महत्वपूर्ण पड़ावों को एक साथ स्मरण करता है । जन्म, ज्ञान और मृत्यु का एक ही दिन पर पड़ना बौद्ध दर्शन में एक चक्रीय विषय को दर्शाता है और इस शुभ दिन के आध्यात्मिक महत्व को और बढ़ाता है। बुद्ध पूर्णिमा न केवल बौद्धों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हिंदू धर्म में भी इसका गहरा महत्व है, क्योंकि भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है । इस मान्यता के कारण, यह दिन हिंदू धर्मावलंबियों के लिए भी उतना ही पवित्र माना जाता है । वास्तव में, यह पर्व हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के अनुयायियों द्वारा बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है । बुद्ध को विष्णु का अवतार मानने की परंपरा भारत में बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के बीच ऐतिहासिक अंतःक्रिया और आपसी सम्मान को दर्शाती है, जिससे एक साझा धार्मिक विरासत का निर्माण होता है।बुद्ध पूर्णिमा से जुड़े कई रोचक तथ्य हैं जो इस त्योहार की गहराई और व्यापकता को दर्शाते हैं। भगवान गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी वन में हुआ था । यह स्थान आज बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है । बचपन में उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया था , और उन्होंने सत्य की गहन खोज में सात वर्ष बिताए । बुद्ध पूर्णिमा को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जो स्थानीय भाषाओं और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध अनुयायी विभिन्न प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। भक्त प्रार्थना करने, ध्यान करने और मंत्रों का जाप करने के लिए बौद्ध मंदिरों (विहारों) में जाते हैं । दुनिया भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी इस पवित्र अवसर पर भारत के बोधगया जैसे महत्वपूर्ण स्थलों पर एकत्रित होते हैं और विशेष प्रार्थनाएं करते हैं । इस दिन बौद्ध धर्म के पवित्र ग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है । मंदिरों और घरों में अगरबत्ती जलाई जाती है, भगवान बुद्ध की मूर्तियों पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं, और दीपक जलाकर उनकी पूजा की जाती है । घरों को भी दीपों से रोशन किया जाता है और फूलों से सजाया जाता है । बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर दान देने का भी विशेष महत्व है । मान्यता है कि इस दिन जल से भरा कलश और विभिन्न प्रकार के पकवान दान करने से गौ दान के समान पुण्य प्राप्त होता है । कुछ लोग इस दिन पिंजरे में कैद पक्षियों और अन्य जानवरों को आजाद करके भी यह त्योहार मनाते हैं , जो करुणा और अहिंसा के बौद्ध सिद्धांतों का प्रतीक है । कुछ क्षेत्रों में, बुद्ध की मूर्तियों की शोभायात्राएं निकाली जाती हैं और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । दीपक जलाना अंधकार को दूर करने और ज्ञान के मार्ग को प्रकाशित करने का प्रतीक माना जाता है । भगवान बुद्ध को खीर का भोग भी लगाया जाता है , क्योंकि मान्यता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध ने खीर पीकर ही अपना उपवास तोड़ा था। बोधगया न केवल बौद्धों बल्कि हिंदुओं के लिए भी एक अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थान है । यहीं पर वह प्रसिद्ध बोधि वृक्ष स्थित है, जो बिहार के गया जिले में महाबोधि मंदिर के परिसर में है। मान्यता है कि इसी वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । बुद्ध पूर्णिमा के दिन इस बोधि वृक्ष की विशेष पूजा की जाती है ; इसकी टहनियों को सजाया जाता है, जड़ों में दूध और इत्र डाला जाता है, और इसके चारों ओर दीपक जलाए जाते हैं । दिल्ली के संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को दर्शन के लिए बाहर निकाला जाता है, जहां बौद्ध अनुयायी आकर अपनी प्रार्थनाएं अर्पित करते हैं । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लगभग एक महीने तक चलने वाला विशाल मेला लगता है । कई अनुयायी इस दिन नैतिक जीवन जीने और भगवान बुद्ध के उपदेशों का पालन करने का संकल्प लेते हैं।
निष्कर्षतः, बुद्ध पूर्णिमा मात्र एक पारंपरिक पर्व नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण जीवन दर्शन है । यह दिन हमें अपने अंतर्मन में झांकने, अपने अहंकार को त्यागने, और करुणा और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है । यह शांति, आपसी समझ, और ज्ञान की प्राप्ति के महत्व का एक शक्तिशाली अनुस्मरण है। आज के अशांत और संघर्षपूर्ण विश्व में, बुद्ध पूर्णिमा शांति, सहिष्णुता, और ज्ञान के महत्व की याद दिलाता है। भगवान बुद्ध की शिक्षाएं हमें दुख से मुक्ति पाने और आंतरिक शांति प्राप्त करने का मार्ग दिखाती हैं । यह दिन बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों - शांति, करुणा, और ज्ञान की खोज - पर गहराई से विचार करने का अवसर प्रदान करता है। बुद्ध के ये शाश्वत मूल्य आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने हजारों साल पहले थे, और बुद्ध पूर्णिमा हमें इन सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाने और एक अधिक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण दुनिया बनाने की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करती है।
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