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कविता-।।

           कविता



भोले शंकर जाप कर, शिव पर तन मन वार।

गंगाधर तेरी करें ,भव से बेड़ा पार ।।


आशुतोष करते सदा, सकल जगत उद्धार ।

मानव दानव देवता, सब पर सम उपकार ।।


औघड़ दानी के यहाँ, सबकुछ है उपलब्ध ।

नहीं किया अब तक कभी, भक्तजनों को क्षुब्ध ।।


सिंह भुजंग मूस मोर अरु नंदी जी का मेल ।

पशुपति ने  संभव किया, अद्भुत अनुपम खेल ।।


गिरिजापति की जिंदगी, देता है यह ज्ञान ।

विषम विषम हों संग जब, सबका रखिये मान ।।


सबकी विपदा को हरे , नीलकंठ भगवान ।

चन्द्रमौलि करते सदा, भक्तों का कल्याण ।।


राम त्रिलोचन को भजे, शंभु भजे श्रीराम ।

भव से हरि हर तारते,भजते जो निष्काम।।


मोहन निशदिन जो करे, महादेव का जाप ।

निश्चय दैहैं मुक्ति प्रभु, हर लेंगे हर पाप ।।


भजते हैं जो भाव से, नित ॐ नमः शिवाय ।

 शिव समीप प्रतिपल रहे, शिवलोकहिं में 

 जाय ।।


पार्वती पतये नमः, हे भूतों के नाथ ।

विमल भक्ति वरदान दे, कीजै नाथ सनाथ ।।

रचयिता- मोहन लाल कौशिक, बिलासपुर (छ.ग.)

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