कविता
निशा नायिका को लिखा है, मैंने भी इक पाती ।
रखा हुआ हूँ मै सहेज कर, अपनी दुर्लभ थाती।।
कर प्रणाम धीरे से उसके कानों में यह बात कही ।
तेरी और माँ की गोदी से, प्यारी गोदी ज्ञात नहीं ।।
अपनी बांहों में ले मुझको, जी भर कर सो लेने दे।
जीवन के रगड़े झगड़े से, मुक्त जरा हो लेने दे ।।
जब भी जागा मैंने सोचा, आज मुझे क्या करना है।
पर माता तुमको निशदिन ही, मेरा दुखड़ा हरना है।।
मेरे जीवन की बगिया में, नव बसंत तुम लाई हो।
इस नश्वर जगतीतल में, कितना मुझको भरमाई हो।।
सच कहता हूँ इक दिन माते, विलग न तुमसे होना है ।
चिरनिद्रा ले अंतिम पल माँ, तेरी गोदी सोना है।।
जग कल्याणी माता तुम पर अपना सब कुछ वारूँगा।
तेरे बल से जीत रहा हूँ, तुम पर ही सब हारूँगा।।
जितनी सुन्दर है यह दुनिया, जितना इससे प्यार मिला ।
पर इन सबसे बढ़कर अगणित, तुमसे है हर बार मिला।।
बहुत रो लिया है जीवन में, अब मुझको हँस लेने दो।
हे माता अपने मोहन को, चिरनिद्रा में सोने दो।।
थपकी देकर मुझे सुलाना, कोई लोरी गाना माँ ।
अंतिम विनती है यह तुमसे, फिर न मुझे जगाना माँ।।
*रचयिता- मोहन लाल कौशिक, बिलासपुर*
0 Comments