सुआ नृत्य - छत्तीसगढ़ का लोकप्रिय नित्य है ।इसे महिलाएं एवं किशोरिया बड़े उत्साह व उल्लास से उस समय आरंभ करती है जब छत्तीसगढ़ के प्रमुख फसल धान के पकने का समय पूर्ण हो जाता है इस नृत्य में महिलाएं घर के सामने गोलाकार झुंड बना कर ताली की थाप पर सुंदर गायन करते हैं। टोकरी जिसमें धान भरा होता है उस मिट्टी से बने दो सुआ शिवऔर गौरी के प्रतीक के रूप में श्रद्धा पूर्वक रखे जाते हैं। नृत्य करते समय महिलाएं टोकरी गोलाकार के बीचो-बीच रख देते हैं और सामूहिक रूप से झूम झूम कर ताली बजाते हुए सुआ गीत गाती है वस्तुतः सुआ गीत नित्य प्रेम नित्य है इसे शिव और गौरी के नाम से व्यक्त किया जाता है।
पंथी नृत्य - यह छत्तीसगढ़ का लोक नृत्य है संत गुरु घासीदास जी के जन्मदिन पर सतनामी संप्रदाय के लोग जैतखाम की स्थापना करके उसका पूजन करते हैं और फिर उसी के चारों तरफ गोल घेरा बनाकर गीत गाते हैं और नाचते हैं। पंथी नृत्य का प्रारंभ देवताओं की स्तुति से होता है उनके गीतों में संत गुरु घासीदास जी का चरित्र ही प्रमुख होता है सामान्यत : इसमें मनुष्य के जीवन की गौरव गाथा के साथ उसका क्षणभंगुरता प्रकट होती है।
राउत नाचा :-यह छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्य में से एक है दीपावली के बाद औरतों द्वारा नीति का सामूहिक आयोजन किया जाता है। वे समूह में सिंह बाजा के साथ गांव के मालिक जिनके में पशुधन की देखभाल करते हैं, उनके लिए यह बड़ा वार्षिक पर्व है बिलासपुर में होने वाले रावत नृत्य प्रतियोगिता ने तो अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध पा ली है। राउत नाचा का फार्म 1978 में बिलासपुर से हुआ था।
गेड़ी नृत्य :-छत्तीसगढ़ अंचल के मुरिया जनजाति के युवक लकड़ी की गेड़ी पर तीव्र गति से नित्य करते हैं इसे डीटोंग कहा जाता है इस नृत्य के साथ गीत नहीं गाया जाता केवल नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में स्त्रियां हिस्सा नहीं लेती केवल पुरुष सदस्य ही शामिल होते है।
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