छत्तीसगढ़ में मिट्टी
छत्तीसगढ़ में निम्न मिट्टी पाई जाती है
- लाल दोमट मिट्टी
- काली मिट्टी
- लाल रेतीली मिट्टी
- लेटराइट मिट्टी
- लाल पीली मिट्टी
लाल दोमट मिट्टी
इस मिट्टी लौह तत्व की अधिकता के कारण इसका रंग लाल होता है यह मिट्टी आर्यकियन एवं ग्रेनाइट के अवछरण से बनी होती है यह कम आद्रता ग्राही होने के कारण जल के अभाव में कठोर हो जाती है अतः इस मिट्टी में कृषि हेतु अधिक जल की आवश्यकता होती है।इस मिट्टी में खरीफ मौसम में धान की अच्छी खेती होती है रवि के मौसम में सिंचाई की व्यवस्था कर इसे मोटे अनाज तिलहन एवं दलहन की खेती की जा सकती है।
विस्तार -: प्रदेश के लगभग 10 से 15% भाग में इस मिट्टी का विस्तार है मुख्य रूप से प्रदेश के बस्तर सुकमा बीजापुर एवं दंतेवाड़ा जिलों में यह मिट्टी पाई जाती है।
काली मिट्टी
स्थानीय भाषा में इसे कन्हार मिट्टी भी कहा जाता है उच्च भूमि में प्राप्त होने वाली काली मिट्टी भर्री कहलाती है।विशाल चट्टानों के अपरदन से काली मिट्टी का निर्माण होता है फेरिक टाइटेनियम एवं मृतिका के सम्मिश्रण के कारण इसका रंग काला होता है इस मिट्टी की जल धारण क्षमता अच्छी होती है पर जल अभाव से ही गर्मी दिनों में यह मिट्टी चटक जाती है।
अधिक आद्रता ग्राही होने के कारण या मिट्टी कृषि हेतु उत्तम मानी जाती है परंतु इसमें नाइट्रोजन फास्फोरस तथा जीवांश का अभाव पाया जाता है धान की फसल के लिए यह मिट्टी सर्वोत्तम होती है।
विस्तार :- इस मिट्टी का विस्तार प्रदेश के बालोद बेमेतरा मुंगेली राजीव महासमुंद कुरूद धमतरी एवं कवर्धा तहसील में पाया जाता है।
लाल पीली मिट्टी
स्थानीय भाषा में इसे मटासी मिट्टी कहते हैं यह मिट्टी गोंडवाना क्रम के चट्टानों के अवशेष से निर्मित होती है यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है इसमें बालू की मात्रा की अधिकता के कारण जल धारण क्षमता कम होती है लाल पीली मिट्टी का प्रदेश में लगभग 50 से 60% भाग में विस्तार है या मिट्टी धान अलसी तेल ज्वार मक्का एवं कोदो कुटकी के लिए प्रयुक्त होता है चुना प्रधान मिट्टी धान की फसल के लिए उपयुक्त होती है।
विस्तार -कोरिया सरगुजा जशपुर रायगढ़ जांजगीर-चांपा कोरबा कवर्धा दुर्ग बिलासपुर रायपुर धमतरी महासमुंद
लाल रेतीली मिट्टी
इसमें लोहे का अंश अधिक होता है जिससे इस मिट्टी का रंग लाल होता है या मिट्टी ग्रेनाइट और नीस के आवछरण से बनी होती है। पोटाश एवं ह्यूमस की मात्रा की कमी तथा बालू कंकड़ आदि की अधिकता के कारण यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है इस मिट्टी में नमी धारण की क्षमता अभाव होता रहता है।
या मिट्टी अधिक उपजाऊ नहीं होती तथा मोटे अनाज आलू तिलहन एवं कोदो कुटकी हेतु उपयुक्त होती है यह मिट्टी मोटे अनाजों के लिए उपयुक्त होती है ।वृक्षारोपण हेतु यह मिट्टी उत्तम होती है।
विस्तार -बस्तर दंतेवाड़ा कांकेर राजनंदगांव रायपुर दुर्ग धमतरी
लेटराइट मिट्टी
इसे स्थानीय भाषा में भाठा मिट्टी कहा जाता है इसमें रेतीली मिट्टी कंकड़ पत्थर आदि होते हैं इससे पोषक तत्वों की कमी रहती है साथ ही मिट्टी में रेत एवं कंकड़ की मात्रा अधिक होने के कारण कम उपजाऊ होती है कठोरता एवं कम आद्रता ग्राही होने के कारण भवन निर्माण एवं कृषि से भिन्न कार्यों के लिए यह मिट्टी उत्तम होती है
विस्तार - यह मिट्टी सरगुजा बलरामपुर जसपुर दुर्ग बेमेतरा बलौदा बाजार राजनंदगांव कवर्धा बस्तर में पाई जाती है।
मिट्टी का स्थानीय नाम
- लाल पिली मिटटी --मटासी
- लैटेराइट --भाठा या मुरमी
- काली मिटटी --- कन्हार
- काली व लाल मिटटी का मिश्रण --डोरसा
- बस्तर के पठार में पायी जाने वाली मिटटी --टिकरा मरहान , माल ,गाभर
- उत्तरी क्षेत्र में पायी जाने वाली --गोदगहबर , बहरा
- नदियों की घाटी में पायी जाने वाली मिटटी---कछारी
- कन्हार और मटासी के बिच की मिटटी --डोरसा
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