गीता हैं, अखबार नहीं हैं नारियाँ
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मात्र सेज-सिंगार नहीं हैं नारियाँ
महलों का अभिसार नहीं हैं नारियाँ
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माँ, बहना, पत्नी, बेटी बहु रूप हैं
आँगन हैं, दीवार नहीं हैं नारियाँ
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रखो यत्न से, पढ़ो बहुत ही ध्यान से
गीता हैं, अखबार नहीं है नारियाँ
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हाथ पसारें हरदम सबके सामने
इतनी भी लाचार नहीं हैं नारियाँ
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धन, दौलत से मोल नहीं इनका होगा
लक्ष्मी हैं, व्यापार नहीं हैं नारियाँ
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✍✍ दिनेश रोहित चतुर्वेदी✍✍
खोखरा जांजगीर(छ. ग.)
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