ब्लैक बोर्ड और डस्टर
(श्यामपट और धूल मार्जनी)
कुछ दिनों पूर्व ही मेरा तबादला इस गाँव की शाला में शिक्षण कार्य संपादन हेतु हुआ था । इस शाला में पठन-पाठन की आधुनिक सुविधाएँ जैसे- बिजली, पंखे, आभासी श्यामपट (डिजिटल ब्लैक बोर्ड) आदि सभी उपलब्ध थे। शाला के एक छोटे से कमरे के बाहर ताला लटक रहा था । चपरासी से पूछने पर ज्ञात हुआ कि उस भंडार कक्ष (स्टोर रूम) में अनुपयोगी पुरानी ब्लैक बोर्ड, डस्टर, फर्नीचर, चाॅक आदी अन्य वस्तुएं रखी हुई हैं ।
एक दिन मैं उस बंद कमरे के पास से गुजर रहा था तो भीतर से किसी के आपस में धीरे-धीरे बातें करने की आवाज सुनाई दी । मैंने भीतर की बातें सुनने के लिये दरवाज़े पर अपने कान टिका दिया ।
उस धूलयुक्त कमरे में पड़े डस्टर और ब्लैक बोर्ड अपने बीते दिनों को याद करते हुए आपस में बातें कर रहे थे। डस्टर ने ब्लैंक बोर्ड से कहा- मित्र, मुझे लगता है कि अब हम दोनों की जिंदगी इस धूल भरे कमरे में ही समाप्त हो जायेगी । ब्लैक बोर्ड ने भी एक गहरी साँस ली और जवाब दिया- हाँ भाई, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है, जैसे हम दोनों इस अंधेरे धूलयुक्त कमरे में ही पड़े-पड़े समाप्त हो जायेंगे ।पहले जब डिजिटल बोर्ड नहीं था तब हम दोनों कितने काम करते और खुश रह्ते थे। ब्लैक बोर्ड ने रुआंसा होकर कहा- शिक्षक और बच्चे मेरे ऊपर लिख कर आनंदित होते और मेरा शरीर भर जाने पर सहलाते हुए तुम मुझे साफ करते। वो भी क्या दिन थे, जाने हमें फिर सूरज की रोशनी देखने को मिलेगी या नहीं?
हमारी शाला के ऊपरी मंजिल के एक कक्ष में एक शिक्षक डिजिटल ब्लैक बोर्ड का उपयोग करते हुए विज्ञान विषय पढ़ाने में व्यस्त थे, अचानक बिजली चली गई और लंबी अवधि तक बिजली नहीं आई। तभी उस शिक्षक को याद आया कि नीचे मंजिल के स्टोर रूम में ब्लैक बोर्ड, डस्टर, चाॅक रखे हुए हैं। शिक्षक उस धूलयुक्त अंधेरे कमरे में आया और ब्लैक बोर्ड, डस्टर एवं चाॅक को उठाकर अपने क्लास रूम में ले गये। बाहर आते ही ब्लैक बोर्ड और डस्टर ने खुली हवा में लंबी गहरी सांसें ली।
शिक्षक ब्लैंक बोर्ड में लिखकर पढ़ाना प्रारंभ किया, ब्लैक बोर्ड के भर जाने पर डस्टर उसे साफ करता। आज दोनों बहुत खुश थे, दोनों एक दूसरे को देखते हुए बोल उठे "नया नौ दिन, पुराना सौ दिन (Old is Gold) अथवा पुराना हमेशा विश्वसनीय होता है।"
शिक्षा - पुरानी वस्तुओं को कभी बेकार नहीं समझना चाहिए।
*पुष्पेन्द्र कुमार कश्यप, सक्ती (छत्तीसगढ़)*
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