*परिश्रम से कमाया धन*
सोनाखान क्षेत्र में एक जमींदर था।वह अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करते थे।प्रजा के दुख: में दुखी,प्रजा के सुख में सुखी होते थे। उसकी जमीनदारी क्षेत्र में एक ब्राह्मण गरीब था।जो भिक्षा मांग कर जीवन यापन करते थे। भिक्षा में जो मिले उसी में खुश और संतुष्ट थे।
ब्राह्मण की पत्नी,सभी ब्रह्मणों को जमींदार से धन दौलत मांग कर अमीर बनते देख।अपने पति को भी जमींदार पास जाने के लिए बोलती पर ब्राह्मण नहीं मानते थे।
एक दिन ब्राह्मण अपनी पत्नी की बात में आकर जमींदार के पास चले गए। जमींदार, ब्राह्मण का आदर सत्कार कर बोले,ब्राह्मण देव कैसे आगमन हुआ? ब्राह्मण,जमींदार से अपने परिश्रम से कमाया हुआ एक आना मांगा जमींदार सोच में पड़ गए कि मैंने आज तक एक पैसा भी परिश्रम से नहीं कमाया। जमींदार ,ब्राह्मण को कल आने के लिए बोल कर चले गए।
ब्राह्मण के जाने के बाद जमींदार वेश बदलकर काम की खोज करते हुए लोहार के पास पहुँचा और उसके पास परिश्रम से एक आना कि कमाई करने के बाद अपने महल आया।अगले दिन जमीदार ने ब्राह्मण को एक आना दे दिया। ब्राह्मण देव उस पैसे को अपने पत्नी को दे दिए इस पर पत्नी नाराज होकर उसे तुलसी चौरा में फेंक दी। कुछ दिनों बाद ब्राह्मण की पत्नी प्रतिदिन तुलसी चौरा में पानी अर्पित करने लगी। उसमें पौधा उगता दिखाई दिया जो देखने में बहुत सुंदर था। देखते-देखते वह पौधा पेड़ में परिवर्तित हो गया और उसमे फल लगना प्रारंभ हो गया। उस फल और फूल की खुशबू चारों और आंगन में फैल रहा था । एक बार अचानक उस जमींदार क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा जमीदार प्रजा के दुख को देखकर अन्न ग्रहण नहीं कर रहे थे जिसका ज्ञान ब्राह्मण को हुआ तो जमीदार को मिलने के लिए घर से कुछ फल और फूल ले गए । जमीदार फल को ग्रहण करने के पूर्व अपने हंस को दिए हंस ने उसे खाया जमीदार इसे देखकर आश्चर्यचकित हुए और इस फल के बारे में जमीदार ने ब्राम्हण से पूछा ब्राह्मण के बताए जाने पर जमींदार ने ब्राम्हण को बताया कि यह मोती का फल है और उसे देखने उसके घर चले गए जमींदार फल के बदले उसे बहुत धन दौलत दिये , उस पेड़ को अपने महल के आंगन में लगाएं।
शिक्षा -परिश्रम का फल मीठा होता है।
✍️पुष्पेंद्र कुमार कश्यप सक्ति
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