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लोभ का फल

 *शीर्षक:-लोभ का फल*

शहर से चोरी कर दीपू और उसका साथी बंटू  लौट रहा था मगर रास्ते में  रात अधिक हो जाने के कारण वे दोनों रास्ते में पड़ने वाले एक जंगल में रात गुजारने के लिए एक पेड़ के नीचे से बैठ कर विश्राम करने लगे।रात काफी हो चुकी थी पर दोनों को तेज भूख लगने के कारण पेट में चूहे दौड़ने लगे। दोनों के पास एक पोटली था जिसमें चोरी का पूरा सामान भरा हुआ था। भूखे पेट दोनों पोटली को खोल कर देखते और मन मसोस कर रह जाते।

      तभी वहां एक बन्दर कूदते हुए आया जो हाथ मे एक संतरा पकड़ा हुआ था। चोर के पास पोटली देख वह ललचाया और संतरा फेंक  पोटली लेकर नौ- दो -ग्यारह हो गया। वहां से थोड़ी दूर जाकर  बन्दर पोटली को दांतों से फाड़ पूरा सामान बिखेर देता है पर उसे खाने का कोई सामान नहीं मिला। वह मन ही मन हाथ से निकल गया संतरा के बारे में सोचने लगा। 

उधर दोनों चोर भूख मिटाने के लिए तुरंत ही संतरा छील खाना शुरू कर दिया और मन ही मन सोचने  लगा कि आज उनके पास इतना चोरी का सामान था पर सब बेकार।अगर वे चोरी न कर मेहनत का रोटी कमाता तो सुख चैन से जीवन यापन करते। वे समझ गए कि भूख का ज्वाला अन्न ही मिटा पाती है न कि चांदी- सोना। वे प्रतिज्ञा करते हैं आगे वे कभी चोरी नहीं करेंगे।

पुष्पेंद्र कुमार कश्यप

शासकीय प्राथमिक शाला सकरेली बा


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