मड़ाई
मड़ाई मेला प्रायः गोडो की सभी जाति उपजातिओ में प्रचलित है मड़ाई से शाब्दिक आशय उस स्थान से है जहां देवी की स्थापना की जाती है मड़ाई मेलों की आयोजन फसल काटने के बाद या कटाई के समय दशहरे के समय से आरंभ होती है मड़ाई तिथि की घोषणा सिरहा पुरोहित द्वारा की जाती है।
बस्तर के विभिन्न स्थानों पर मड़ाई मेला का आयोजन किया जाता है इसलिए बस्तर को मड़ाई का संसार भी कहते हैं बस्तर के अतिरिक्त दुर्ग राजनांदगांव में लड़ाई होती है जिसमें दंतेवाड़ा की फागुन बढ़ाई कांकेर फरस गांव की मड़ाई प्रसिद्ध है किंतु सर्वाधिक प्रसिद्ध नारायणपुर की मड़ाई है।
मड़ाई मेला का बाह्यरूप अन्य मेलों की तरह दिखाई पड़ता है किंतु आंतरिक रुप में धार्मिकता इसका प्रमुख तत्व है मड़ाई देवताओं की उपस्थिति में उल्लास का पर्व है मड़ई के अवसर पर मुड़िया घोटूल के सदस्य एबालतोय नृत्य करते हैं समूचे समुदाय की मड़ाई में उल्लास पूर्वक भागीदारी होती है।
मड़ाई के दौरान आदिवासी संस्कृति का संपूर्ण प्रदर्शन देखा जा सकता है आदिवासी नृत्य गीत एवं पारंपरिक वेशभूषा श्रृंगार का खुलकर प्रदर्शन होता है, मेलों में आदिवासी अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए खरीद-फरोख्त करते हैं।
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