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महाराजा चक्रधर सिंह जीवन परिचयMaharaja Chakradhar Singh Biography

                    महाराजा चक्रधर सिंह




राजा चक्रधर सिंह




 गायन, वादन, अभिनय और नर्तन के विशेषज्ञ राजा चक्रधर सिंह का जन्म 19 अगस्त 1905 को रायगढ़ रियासत में हुआ उन्हें संगीत विरासत में मिली 1924 में उनका राज्याभिषेक हुआ और 1947 में उसका निधन हो गया।

रायगढ़ के महाराजा चक्रधर सिंह कलाप्रेमी तबला वादक गीतकार संगीतकार नृत्य कला में पारंगत थे उन्होंने राजकुमार कॉलेज रायपुर से शिक्षा प्राप्त किया था।

चक्रधर सिंह का पुस्तक लेखन

तालबल पुष्पाकर, ताल तोयनिधि, नर्तन सर्वस्व, राग रत्न मंजूषा


राजा चक्रधर सिंह एक विलक्षण नर्तक थे उन्होंने कत्थक नृत्य के विकास में अपना निजी योगदान दिया उनकी कृति नर्तन सर्वस्व कथक नृत्य पर केंद्रित पहला शास्त्री  ग्रंथ है उनकी दूसरी कृति मुरज वर्ण पुष्पाकर को कत्थक नृत्य का विश्वकोश कहा जा सकता है उन्हीं के संरक्षण में रायगढ़ कत्थक घराने का जन्म हुआ प्रसिद्ध नर्तक पंडित कार्तिक राम  उन्हीं के शिष्य थे।

वे देश के मूर्धन्य तबला वादक थे वह सितार बजाने में भी प्रवीण थे 1939 में वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो के स्वागत में आयोजित संगीत समारोह में उन्होंने तबले पर संगत की वायसराय ने मुक्त होकर उन्हें संगीत सम्राट की उपाधि दी संगीत साधना उनके लिए एक अध्यात्मिक साधना थी।

रायगढ़ के राजा चक्रधर कला व साहित्य के महान संरक्षक थे संगीत के प्रति उनका विशेष अनुराग था। स्वतंत्रता के पूर्व देश का शायद ही ऐसा कोई महान कलाकार होगा जिसका संबंध राजा चक्रधर सिंह और रायगढ़ सेना और हां हो संगीत नृत्य और ललित कलाओं के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान रहा।

राजा चक्रधर सिंह योग्य साहित्यकार भी थे उन्होंने उपन्यास नाटक और कविताएं भी लिखी है उन्हें संस्कृत हिंदी बजरंग उर्दू अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था उनकी प्रमुख रचना है अलकापुर मायाचक्र रस्मराज और बैरागढ़िया  राजकुमार उन्होंने संस्कृत में रत्न मंजूषा ब्रज में काव्य कानन और उर्दू में जोश कहरत और निगाहे फरहत नामक रचनाएं लिखी है।

उनकी स्मृति में आज भी रायगढ़ में चक्रधर समारोह आयोजित किया जाता है।

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