माता ब्रह्मचारिणी
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*विधा- आल्हा छंद*
*मापनी- 16-15 मात्राएँ*
नवरात्रि की द्वितीया तिथि को,
ब्रह्मचारिणी माँ का रूप ।
माता का दर्शन अति पावन,
है मनमोहक और अनूप ।
तपस्विनी मुद्रा है माँ की,
अक्षमाल दाँये कर धार ।
वामहस्त में लिए कमंडल,
अपने पैरों पर असवार ।
पंकज के आभूषण पहने,
पंकज के ही पहने हार।
श्वेत वस्त्र पहनी हैं माता,
मुख मंडल में तेज अपार ।
सदाचार वैराग्य त्याग की,
मूर्त रूप माँ का अवतार ।
माँ के तप को सुर नर मुनिगण
अचरज से सब रहे निहार ।
कठिन तपस्या माता कीन्हीं
शिव से नारद कहे पुकार ।
हों प्रसन्न भोले भंडारी,
करिये माता को स्वीकार ।
मातु भवानी के इस तप से,
कहीं न जल जाए संसार ।
शिव-शिवा दोनों मिलकर प्रभु,
भक्तों का करिये उद्धार ।
जै जै जै हे जै शिवशंकर,
जै जै हे जगदम्बेे मात ।
अमर उजाला फैले जग में,
मोहन भी लख सके प्रभात ।।
रचयिता- मोहन लाल कौशिक, बिलासपुर (छ.ग.)*
दिनांक- 16/10/2023
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