माता चंद्रघंटा
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*विधा-आल्हा छंद*
*मापनी- 16-15 मात्राएँ*
तृतीय दिवस है नवरात्रि का,
माँ हैं अनुपम अगम अनूप ।
जिसे चंद्रघंटा पुकारतेे ,
मनोहारी माता का रूप ।
अर्ध चंद्रमा और घंटिका ,
सोह रहे माता के भाल ।
दशभुज वाली हैं माता श्री,
दुष्टों को लगती विकराल ।
अस्त्र-शस्त्र हाथों में लेकर,
सिंह पर माता हो असवार ।
भक्तजनों को दर्शन देने,
पापों का करने संहार ।
खड्ग त्रिशूल गदा जपमाला,
बाण कमंडल असि गुल धार।
स्वर्णकांति मय आदि भवानी,
पहने लाल चुनरिया हार ।
वर देने वरमुद्रा में माँ ,
अभय किया सारा संसार ।
रोग शोक सब निकस गए हैं ,
सुनकर घंटी की झंकार ।
सारे जग की तू माता है,
मोहन है भोला नादान ।
जै अंबे जै मातु भवानी,
करिये माँ सबका कल्याण ।
सुर नर मुनि सब ध्यान धरत हैं,
निशदिन करते हैं गुणगान ।
सुन अरदास क्षमा कर माता,
माँ होती है सदा महान ।।
*रचयिता- मोहन लाल कौशिक, बिलासपुर (छ.ग.)*
*दिनांक- 17/07/2023*
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