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वीर नारायण सिंह


                               वीर नारायण सिंह



 बिंझवार जनजाति के वीर नारायण सिंह का जन्म सोनाखान जिला बलौदा बाजार में हुआ था, इनके पिता राम राय सोनाखान के जमीदार थे पिता राम राय ने 1818-19 के दौरान अंग्रेजों और भोसले के विरुद्ध  युद्ध किया लेकिन नागपुर के कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह को दबा दिया।




  पिता की मृत्यु के बाद 1830 में  नारायण सिंह जमीदार बने परोपकारी प्रवृत्ति के कारण वे गांव-गांव जाकर लोगों की समस्याएं दूर करते तालाब निर्माण वृक्षारोपण जैसे जन कल्याणकारी कार्यक्रम कराते मृदुभाषी मिलनसार धर्म परायण नारायण सी में एक आदर्श जमीदार के सारे गुण थे।

1854 में छत्तीसगढ़ के अंग्रेजी राज्य में मिलने के बाद नए ढंग से टकोली नियत की गई जिसका नारायण से ने जमकर विरोध किया 1856 में छत्तीसगढ़ भीषण सूखे की चपेट में रहा लोग दाने-दाने को तरसने लगे लेकिन गांव के व्यापारी माखन के गोदाम अनाज से भरे थे नारायण सिंह से जनता की इस तरह भूखे मरते देखा नहीं गया और उन्होंने अनाज भंडार के ताले तोड़ दिए व्यापारी माखन की शिकायत पर इलियट ने वीर नारायण सिंह के विरुद्ध वारंट जारी किया 24 अक्टूबर 1856 को संबलपुर में गिरफ्तार कर लिया गया 28 अगस्त 1857 को नारायण से अपने तीन साथियों के साथ जेल से भाग निकले।

जीने सोनाखान पहुंचकर 500 बंदूकधारियों की सेना बना ली उन्हें गिरफ्तार करना अंग्रेजों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया नारायण साईं ने सोनाखान से अंग्रेजों का जमकर विरोध किया लेकिन अंततः स्मिथ के नेतृत्व में अंग्रेजों की सेना ने काफी मुश्किलों के बाद उन्हें पकड़ लिया इलियट की अदालत में उनके विरुद्ध मुकदमा चलाया गया और 10 दिसंबर 1857 को उन्हें फांसी की सजा दी गई वह स्थान जयस्तंभ चौक (शाहिद चौक) रायपुर के नाम से वर्तमान में प्रसिद्ध है वह भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद है।

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