छत्तीसगढ़ की जनजातियांं
- छत्तीसगढ़ जनजाति बहुल राज्य है , दुर्गम एवं दूरस्थ स्थान में निवास करने वाले ऐसे समूह को जनजाति कहा जाता है जिसका विशिष्ट नाम भाषा ,सांस्कृतिक एवं आर्थिक आधार होता है।
- ऐसे जनजाति जिन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत सूचीबद्ध किया जाता है अनुसूचित जनजाति कहलाते हैं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह किसी भी जनजाति समूह को अनुसूचित घोषित कर सकता है।
- छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति समूह की घोषित संख्या 42 है।
- प्रदेश का 81861 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अनुसूचित क्षेत्र है प्रदेश के मुख्य जनजाति बहुत सी उप जातियों में विभाजित है।
छत्तीसगढ़ के जनजातियों का सामान्य विशेषता
- जनजातिया आज भी सभ्यता से काफी दूर है तथा दुर्गम क्षेत्र में रहती है।
- यह मुख्यता नीग्रिटो और प्रोटो ऑस्टेनाइट प्रजातियों से संबंध है।
- यह विशिष्ट जनजातियां भाषा बोलती है।
- यह प्राचीन धर्म को मानते हैं बहू देव आदि होते हैं तथा भूत प्रेतों की पूजा पर बल देते हैं।
- यह प्राचीन उद्यमों तथा जंगली फल फूल कंदमूल को इकट्ठा करने शिकार करने अथवा मछली मारने स्थानांतरित कृषि जैसे कार्य करते हैं।
- अधिकांश जनजातियां नग्न या अर्धनग्न अवस्था में रहती है।
- यह प्रायः मांसाहारी होते हैं।
- जनजातियां स्थानांतरित कृषि करते हैं।
संकेंद्रण
- उत्तरी पूर्वी क्षेत्र
- मध्यवर्ती भाग
- दक्षिणी क्षेत्र
प्रदेश की विशेष पिछड़ी जनजातियां
छत्तीसगढ़ राज्य में 5 विशेष पिछड़ी जनजाति निवास करती है जो निम्नानुसार है
- बैगा
- पहाड़ी कोरवा
- बिरहोर
- कमार
- अबूझमाडिया
- राष्ट पति द्वारा अधिसूचित जनजाति
- पांडो
- भूंजिया
नोट :- विशेष पिछड़ी जनजातियों के विकास के लिए अलग-अलग विकास अभिकरण गठित है।
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