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 *बिहाव*


 संगी हो आज हमन बिहाव के बारे म अब्बड़ कन सुधी लेबो. जेखर से हमन अवईया पीढ़ी ल कुछ सुग्घर, सरल अउ सहज रूप म बिहाव संस्कार के गोठ बात ल संजो के रखसकथन. त संगी हो मे ह आपमन ल बिहाव के सही अरथ ल बतावत हवँ. जेनला सुनके, अउ पढ़के बड़ निक लागहि.।

          वेसे तो बिहाव नाम के शब्द म ही बहुत सुख मिलथे. जब ले जनम हो रहिथे तभे ले दाई -ददा मन अपन नोनी -बाबू बर गाड़ा -गाड़ा सपना संजो लेथे अउ ओखरे सेती कनिहा म डोरी कसके बांध के दिन रात रकत- मांस ल अऊँटात रहिथे. बेचारी दाई हर तो चुंदी -मुड़ी के सुधी ल घलो भूला जथे. ददा बेचारा के दुःख ल काय बतावा? ओखर दुःख ल तो एक ददा ही समझ सकथे.बेचारा हर अपन नोनी -बाबू के भविष्य के सेती चिरहा -फतहा कुरथा ल पहिन के दिन गुजार देथे. अउ काल ह कब बीत जाथे पता नई चलय. जेन दाई -ददा हर जवान रहिथे ओहर कब डोकरा -डोकरी हो जथे कुछ भनक नहीं चलय. छत्तीसगढ़ राज्य म वैसे तो दहेज -वहेज के कुप्रथा नई हे. तभो ले पता नई काबर मनखे मन हर बिहाव ल अटका कठिन बना देहे.मोर भेजा (दिमाग)म समझ नहीं आवत हे. ये बिहाव ह खुशहाली नई होके एक ठिन बड़का बोजहा होगे हवय जम्मो दाई -ददा बर. बेचारी नोनी हर जब ससुराल जाथे त ऐसे लगथे के ओला दाई -ददा मन ठग के बिदा करत हवय. काबर के ओ नोनी के दुःख अब एही लंग शुरू होय लगथे. बिचारी नोनी मन हर न मायके के होवय न ससुराल के. ओखर कोनो जघा ठौर नई रहय. ओखरे सेती सियान मन एक ठिन हाना पारे हे के "टुरी जात के घर नई रहय, ओहर तो करिया डेचकी कस होथे." मतलब के एक बार ओखर जिंदगी बिगड़ जाथे तहँ ले ओखर ऊपर करिया कलंक (केराऊंछ )लग जाथे.

      बिहाव शब्द के रूप हर बदल गिस. अब एखर नावँ ल सुनके ही जी हर थरथरा जाथे. एखरे सेती बहुत झन नोनी मन हर कुमारी (कुआँरी) के जिनगी जीयत सरी जिनगी ल बीता देवत हे. संगी हो मे हर बिहाव के बारे म कोनो दुश्प्रचार (अफवाह) नई फैलावत (बगरावत) हवँ. भूल -चूक माफ़ी देहव.


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दिनाँक

09-08-2021


            सीमा यादव, मुंगेली

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